मां का दिल
एक मां थी। उसका एक बेटा था। मां ने उसे पाला-पोसा, बड़ा किया। उसे अपने पैरों पर खड़ा होने योग्य बनाया। सब कुछ व्यवस्थित होने पर मां ने उसका विवाह कर दिया। जैसा कि होता है, लड़का मां का भी ख्याल रखता और पत्नी का भी। लेकिन पत्नी को यह मंजूर नही था। वह बार-बार पति से एक ही सवाल करती ,' तुम किसे अधिक प्यार करते हो अपनी मां को या मुझे?'
लड़का पशोपेश में पड़ जाता। वह पत्नी को खुश करने के लिए कह देता, 'मैं सिर्फ तुम्हे ही प्यार करता हूं। मेरा विश्वास करो।'
परन्तु पत्नी कहां मानने वाली थी। वह बार-बार लगातार यही सवाल करती रहती। आखिरकार लड़के के सब्र का बांध एक दिन टूट ही गया। उसने पत्नी से सवाल किया, ' आखिर रोज-रोज यह सवाल कर तुम साबित क्या करना चाहती हो, क्या मैं झूठ बोल रहा हूं। आज तुम मुझे साफ-साफ बताओ, आखिर तुम चाहती क्या हो? '
पत्नी ने अपना मनचाहा सवाल पति के सामने रखा, ' अगर तुम वाकई सिर्फ मुझे ही चाहते हो तो तुम्हे इसका सुबूत देना होगा। बोलो तुम्हे मंजूर है? '
लड़के ने रोज-रोज की खिच-खिच से बचने के लिए कह दिया, 'हां, तुम बोलो तुम्हे क्या सुबूत चाहिए । मैं तुम्हारे इस बेतुके सवाल से परेशान हो गया हूं। बताओ मैं कैसे तुम्हे विश्वास दिलाऊं। मुझे क्या करना होगा '
पत्नी ने सपाट स्वर में पूछा, ' क्या तुम अपनी मां का कलेजा निकाल कर ला सकते हो? '
लड़के को काटो तो खुन नही। पर वह भी दिल का कमजोर निकला। वह वाकई पत्नी से प्यार करता था। पर पत्नी इस बात को समझ नही पाई और एक बेटे के हाथों जो नही होना चाहिए, वह हुआ।
लड़का गया और मां का कलेजा निकाल कर पत्नी के पास ले जाने लगा, अपने प्यार का सुबूत पेश करने के लिए। तभी कमरे से निकलते समय लड़के का पैर चौखट से टकरा गया। वह गिरने-गिरने को हुआ तभी मां के कलेजे से आवाज आई, ' बेटा, चोट तो नही लगी ?'
एक मां थी। उसका एक बेटा था। मां ने उसे पाला-पोसा, बड़ा किया। उसे अपने पैरों पर खड़ा होने योग्य बनाया। सब कुछ व्यवस्थित होने पर मां ने उसका विवाह कर दिया। जैसा कि होता है, लड़का मां का भी ख्याल रखता और पत्नी का भी। लेकिन पत्नी को यह मंजूर नही था। वह बार-बार पति से एक ही सवाल करती ,' तुम किसे अधिक प्यार करते हो अपनी मां को या मुझे?'
लड़का पशोपेश में पड़ जाता। वह पत्नी को खुश करने के लिए कह देता, 'मैं सिर्फ तुम्हे ही प्यार करता हूं। मेरा विश्वास करो।'
परन्तु पत्नी कहां मानने वाली थी। वह बार-बार लगातार यही सवाल करती रहती। आखिरकार लड़के के सब्र का बांध एक दिन टूट ही गया। उसने पत्नी से सवाल किया, ' आखिर रोज-रोज यह सवाल कर तुम साबित क्या करना चाहती हो, क्या मैं झूठ बोल रहा हूं। आज तुम मुझे साफ-साफ बताओ, आखिर तुम चाहती क्या हो? '
पत्नी ने अपना मनचाहा सवाल पति के सामने रखा, ' अगर तुम वाकई सिर्फ मुझे ही चाहते हो तो तुम्हे इसका सुबूत देना होगा। बोलो तुम्हे मंजूर है? '
लड़के ने रोज-रोज की खिच-खिच से बचने के लिए कह दिया, 'हां, तुम बोलो तुम्हे क्या सुबूत चाहिए । मैं तुम्हारे इस बेतुके सवाल से परेशान हो गया हूं। बताओ मैं कैसे तुम्हे विश्वास दिलाऊं। मुझे क्या करना होगा '
पत्नी ने सपाट स्वर में पूछा, ' क्या तुम अपनी मां का कलेजा निकाल कर ला सकते हो? '
लड़के को काटो तो खुन नही। पर वह भी दिल का कमजोर निकला। वह वाकई पत्नी से प्यार करता था। पर पत्नी इस बात को समझ नही पाई और एक बेटे के हाथों जो नही होना चाहिए, वह हुआ।
लड़का गया और मां का कलेजा निकाल कर पत्नी के पास ले जाने लगा, अपने प्यार का सुबूत पेश करने के लिए। तभी कमरे से निकलते समय लड़के का पैर चौखट से टकरा गया। वह गिरने-गिरने को हुआ तभी मां के कलेजे से आवाज आई, ' बेटा, चोट तो नही लगी ?'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (15-11-2014) को "मासूम किलकारी" {चर्चा - 1798} पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
बालदिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
इस कहानी को याद दिलाने का शुक्रिया।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लोककथा है... उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@आंधियाँ भी चले और दिया भी जले