Thursday 4 August 2011

लघुकथा
बोनसाई की छाया  
     "दादी, आप क्‍या कर रही हैं?" नन्‍ही गोपी बगीचे में खेलते-खेलते अचानक आकर प्रतिभा से पूछती है।
     "मै इस पेड़ को पानी से सींच रही हूं, इसकी सेवा कर रही हूं, जिससे कि यह  भी एक बडा़-सा पेड बन जाए।" प्रतिभा के चेहरे पर दर्द की एक परत-सी बिछ गई।
    "हा-हा-हा, दादी आप इसे पेड़ कैसे बना सकती हैं। यह तो बोनसाई का पेड़ है जो हमेशा छोटा ही रहता है। अच्‍छा! इसी से माली काका मुझसे कई बार पूछ चुके है कि इस पेड़ को जमीन में मैंने लगाया है क्‍या। जब भी मैं सिर हिलाकर ना करती तो वे मुझे अविश्‍वास भरी नजरों से देखते। मेरे पूछने पर उन्‍होंने बताया कि जमीन में लगाने से यह पेड़ बन जायेगा। जबकि वे इसे बोनसाई बनाना चाहते हैं। दादी, पेड़ और बोनसाई कैसे बनाए जाते है?" नन्‍ही गोपी की आंखों में जिज्ञासा थी।
    "पेड़ जमीन में लगाया जाता है और उसे खाद-पानी दिया जाता है जिससे उसकी जड़ें जमीन में गहरी पैठ जाती हैं और वह अपने मन-मुताबिक जितना चाहे उतना टहनियों सरीखी बांहें फैला सकता है और आसमान की उंचाइयों को छू सकता है। जबकि बोनसाई को बनाने के लिए पहले उसकी जड़ों को काटा जाता है। फिर उसकी टहनियों को काट दिया जाता है। और ऐसा तब-तब किया जाता है जब-जब वह टहनियों सरीखी अपनी बांहें आसमान की ओर फैलाना चाहती है। जब-जब वह मिट्टी में जड़ जमा लेती है उसे मिट्टी से बाहर निकाला जाता है और उसकी जड़ों को काट दिया जाता है और नयी मिट्टी और खाद के हवाले कर दिया जाता है।" प्रतिभा की आवाज लड़खडा़ने लगी थी। 
   '' अच्‍छा दादी, अब मैं खेलने जा रही हूं।" नन्‍ही गोपी मचलते हुए बोली । जैसे ही गोपी जाने के लिए मुडी़ प्रतिभा ने उसका हाथ पकड़कर रोका और बोली," बेटी, तुम भी पेड़ की तरह बनना। मेरी तरह बोनसाई कभी नही बनना।"
तीर्थयात्रा


"प्रणाम चाची!'' किशन ने झुककर  सरला देवी के चरणों को स्‍पर्श किया।
"खुश रहो बेटा !"  उनका चेहरा खिल उठा।
"चाची अब तो चारों बेटों का शादी-ब्‍याह हो गया। उन्‍हें बाल-बच्‍चे  भी हो गये। अब तो बेटों से कहिए, आपको चारों धाम घुमा  दें।''  किशन चाची के नजदीक बैठते हुए बोला।
 " हां बेटे ! चारो धाम बेटे क्‍या घुमाएंगे, मैं स्‍वयं ही चारों धाम घूमती रहती हूं। चारों के यहां तीन-तीन महीने की पारी है। उनके ही बाल-बच्‍चों के दर्शन कर निहाल हो जाती हूं। जैसे ही तीन महीने पूरे होते हैं, दूसरे धाम पर जाने के लिए बोरिया-बिस्तर समेट लेना होता है... अब तो इन्‍हीं चारों धामों में घूम-घूम कर अपने जीवन को सार्थक कर रही हूं।''
  किशन चाची का चेहरा पढने की कोशिश कर रहा था। चाची का चेहरा निर्विकार था ।