Thursday 4 August 2011

तीर्थयात्रा


"प्रणाम चाची!'' किशन ने झुककर  सरला देवी के चरणों को स्‍पर्श किया।
"खुश रहो बेटा !"  उनका चेहरा खिल उठा।
"चाची अब तो चारों बेटों का शादी-ब्‍याह हो गया। उन्‍हें बाल-बच्‍चे  भी हो गये। अब तो बेटों से कहिए, आपको चारों धाम घुमा  दें।''  किशन चाची के नजदीक बैठते हुए बोला।
 " हां बेटे ! चारो धाम बेटे क्‍या घुमाएंगे, मैं स्‍वयं ही चारों धाम घूमती रहती हूं। चारों के यहां तीन-तीन महीने की पारी है। उनके ही बाल-बच्‍चों के दर्शन कर निहाल हो जाती हूं। जैसे ही तीन महीने पूरे होते हैं, दूसरे धाम पर जाने के लिए बोरिया-बिस्तर समेट लेना होता है... अब तो इन्‍हीं चारों धामों में घूम-घूम कर अपने जीवन को सार्थक कर रही हूं।''
  किशन चाची का चेहरा पढने की कोशिश कर रहा था। चाची का चेहरा निर्विकार था ।    

2 comments:

  1. I LIKE UR SHORT STORY, ITNE KAM SABDO ME SAB KUCHH KAH DIYA .................HUMARE SAMAAJ KI SABSE KADAWI SACHCHAI ,JISE SOCHKAR HI DIL DAHAL JAATA HAI, HAR AADMI APANE ISSI BHAVISYA SE DARTA HAI, JO AISA KARTE HAI, USSE BHI ISKA AABHASH HONA CHAHIYE KI UNKA BHI BHAVISHYA AISA HI HONEWALA HAI.......................KYUNKI YE TO SACH HAI KI JAISI KARNI WAISI BHARNI...............................................

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  2. Bahut sateek likha h, bhai. Par charon beton ko yeh khayal nahi h, ke, yeh samay unke jeevan me bhi aayega, ek din, aur halaat aaj se achhe toh nahi hone waale, kyonki, unke bachhe toh yeh sab dekh kar hi bade ho rahe hn.

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