Saturday 21 January 2012

:: लोककथा ::

                                                                  चतुर लड़की

एक गरीब आदमी था। एक दिन वह राजा  के पास गया और बोला- 'महाराज, मैं आपसे कर्ज मांगने आया हूं। कृपा कर आप मुझे पांच हजार रुपये दें। मैं पांच वर्ष के अंदर आपके रुपये वापस कर दूंगा।'
       राजा ने उसकी बात पर विश्‍वास कर उसे पांच हजार  रुपये दे दिए। पांच वर्ष बीत जाने के बाद भी जब उस व्‍यक्ति ने राजा के पांच हजार  रुपये नही लौटाये तब राजा को मजबूरन उसके घर जाना पड़ा। लेकिन वहां वह व्‍यक्ति नही मिला। जब भी राजा वहां जाता बहाना बना कर उसे वापस भेज दिया जाता। एक दिन फिर राजा उस व्‍यक्ति के घर गया। वहां और कोई तो नही दिखा, एक छोटी लड़की बैठी थी। राजा ने उसी से पूछा- 'तुम्‍हारे पिता जी कहा हैं ?'
      लड़की बोली- ' पि‍ताजी स्‍वर्ग का पानी रोकने गये हैं। '
      राजा ने फिर पूछा- 'तुम्‍हारा भाई कहां है ?'
     लड़की बोली- 'बिना झगड़ा के झगड़ा करने गये हैं।'
     राजा के समझ में एक भी बात नही आ रही थी। इसलिए वह फिर पूछता है-' तुम्‍हारी मां कहां है ?'
    लड़की बोली- 'मां एक से दो करने गई है।'
 राजा उसके इन ऊल-जुलूल जवाब से खीझ गया। वह गुस्‍से में पूछता है- 'और तुम यहां बैठी क्‍या कर रही हो ?'
      लड़की हंसकर बोली- 'मैं घर बैठी संसार देख रही हूं।'
राजा समझ गया कि लड़की उसकी किसी भी बात का सीधा जवाब नही देगी। इसलिए उसे अब इससे इन बातों का मतलब जानने के लिए प्‍यार से बतियाना पडे़गा। राजा ने चेहरे पर प्‍यार से मुस्‍कान लाकर पूछा- 'बेटी, तुमने जो अभी-अभी मेरे सवालों के जवाब दिये, उनका मतलब क्‍या है ? मै तुम्‍हारी एक भी बात का मतलब नही समझ सका। तुम मुझे सीधे-सीधे उनका मतलब समझाओ।'
    लड़की ने भी मुस्‍करा कर पूछा - 'अगर मैं सभी बातों का मतलब समझा दूं तो आप मुझे क्‍या देंगे ?'
राजा के मन में सारी बातों को जानने की तीव्र उत्‍कंठा थी। वह बोला- 'जो मांगोगी , वही दूंगा ।'
    तब लड़की बोली- 'आप मेरे पिताजी का सारा कर्ज माफ कर देंगे तो मैं आपको सारी बातों का अर्थ बता दूंगी।'
     राजा ने कहा- 'ठीक है, मैं तुम्‍हारे पिताजी का सारा कर्ज माफ कर दूंगा। अब तो सारी बातों का अर्थ समझा दो।'
     लड़की बोली- 'महाराज, आज मैं आपको सारी बातों का अर्थ नही समझा सकती। कृपा कर आप कल आयें। कल मैं जरूर बता दूगी।'  
    राजा अगले दिन फिर उस व्‍यक्ति के घर गया। आज वहां सभी लोग मौजूद थे। वह आदमी, उसकी पत्‍नी, बेटा और उसकी बेटी भी। राजा को देखते ही लड़की पूछी- 'महाराज, आपको अपना वचन याद है ना ? '
     राजा बोला- 'हां मुझे याद है। तुम अगर सारी बातों का अर्थ बता दो तो मैं तुम्‍हारे पिताजी का सारा कर्ज माफ कर दूंगा।'
    लड़की बोली- 'सबसे पहले मैंने यह कहा था कि पिताजी स्‍वर्ग का पानी रोकने गये हैं, इसका मतलब था कि वर्षा हो रही थी और हमारे घर की छत से पानी चू रहा था। पिताजी पानी रोकने के लिए छत को छा  (बना) रहे थे। यानि वर्षा का पानी आसमान से ही गिरता है और हमलोग तो यही मानते हैं कि आसमान मे ही स्‍वर्ग है। बस, पहली बात का अर्थ यही है। दूसरी बात मैंने कही थी कि भइया बिना झगडा़ के झगड़ा करने गये है। इसका मतलब था कि वे रेंगनी के कांटे को काटने गये थे। अगर कोई भी रेंगनी के कांटे को काटेगा तो उसके शरीर मे जहां-तहां कांटा गड़ ही जायेगा, यानि झगड़ा नही करने पर भी झगड़ा होगा और शरीर पर खरोंचें आयेगी। '
     राजा उसकी बातों से सहमत हो गया। वह मन-ही-मन उसकी चतुराई की प्रशंसा करने लगा। उसने उत्‍सुकता के साथ पूछा- 'और तीसरी-चौथी बात का मतलब बेटी ? '
     लड़की बोली- 'महाराज, तीसरी बात मैंने कही थी कि मां एक से दो करने गई है। इसका मतलब था कि मां रहर दाल को पीसने यानि उसे एक का दो करने गई है। अगर साबुत दाल को पीसा जाय तो एक दाना का दो भाग हो जाता है। यानि यही था एक का दो करना। रही चौथी बात तो उस समय मैं भात बना रही थी और उसमे से एक चावल निकाल कर देख रही थी कि भात पूरी तरह पका है कि न‍ही। इसका मतलब है कि मैं एक चावल देखकर ही जान जाती कि पूरा चावल पका है कि नही । अर्थात चावल के संसार को मैं घर बैठी देख रही थी।' यह कहकर लड़की चुप हो  गई।
     राजा सारी बातों का अर्थ जान चुका था। उसे लड़की की बुद्धिमानी भरी बातों ने आश्‍चर्य में डाल दिया था। फिर राजा ने कहा- 'बेटी, तुम तो बहुत चतुर हो। पर एक बात समझ में नही आई कि यह सारी बातें तो तुम मुझे कल भी बता सकती थी, फिर तुमने मुझे आज क्‍यों बुलाया ?'
      लड़की हंसकर बोली- ' मैं तो बता ही चुकी हूं कि कल जब आप आये थे तो मैं भात बना रही थी। अगर मैं आपको अपनी बातों का मतलब समझाने लगती तो भात गीला हो जाता या जल जाता, तो मां मुझे जरूर पीटती। फिर घर मे कल कोई भी नही था। अगर मैं इनको बताती कि आपने कर्ज माफ कर दिया है तो ये मेरी बात का विश्‍वास नही करते। आज स्‍वयं आपके मुंह से सुनकर कि आपने कर्ज माफ कर दिया है, जहां इन्‍हें इसका विश्‍वास हो जायेगा, वही खुशी भी होगी। '
    राजा लड़की की बात सुनकर बहुत ही प्रसन्‍न हुआ। उसने अपने गले से मोतियों की माला निकाल उसे देते हुए कहा- 'बेटी, यह लो अपनी चतुराई का पुरस्‍कार! तुम्‍हारे पिताजी का कर्ज तो मैं माफ कर ही चुका हूं। अब तुम्‍हे या तुम्‍हारे घरवालों को मुझसे बहाना नही बनाना पड़ेगा। अब तुम लोग निश्चिंत होकर रहो। अगर फिर कभी किसी चीज की जरूरत हो तो बेझिझक होकर मुझसे कहना।'
     इतना कहकर राजा लड़की को आशीर्वाद देकर चला गया। लड़की के परिवारवालों ने उसे खुशी से गले लगा लिया।

Wednesday 11 January 2012

कविता

                                                                           मां 


 मां
रोज सपने में आती हो
लोरी गाती हो
गीत गुनगुनाती हो
कहा‍नियां सुनाती हो
फिर न जाने कहां खो जाती हो
मां
आती तो हो
सपने में ही सही
गाती हो
गुनगुनाती हो
मुझे सोना आजकल बहुत ही अच्‍छा लगता है
क्‍योंकि मां से मिलना जो होता है
रात ही क्‍यों आजकल तो दिन में भी
सोने का मौका निकाल लेती हूं
क्‍योंकि दिन के सपने सच्‍चे जो होते हैं
मन का भुलावा है
यह एक छलावा है
फिर भी मैं नींद के आगोश में जाना चाहती हूं
क्‍योंकि मां तो आयेगी ही
सपने में ही सही
गायेगी, गुनगुनाएगी
सपने में ही सही
सपने सच्‍चे लगते हैं
सपने अच्‍छे लगते हैं
मां का साथ हो तो
सपनों की दुनिया भी
अपनी ही लगती है
मां सपने में
बहुत ही प्‍यारी लगती है

Sunday 8 January 2012

लोककथा

                                                                         क्‍यों बोला

एक राजा था। उसके पास किसी चीज की कमी नही थी, सिवा औलाद के। एक दिन राजा शंकर भगवान के पास गया और बोला - 'भगवन! देवों के देव मेरे पास किसी चीज की कमी नही है। पर इन सबका उपभोग करने वाली औलाद ही मेरे पास नही है। आप मुझे आशीर्वाद दें कि‍ मुझे औलाद प्राप्‍त हो।'
     श्‍ांकर भगवान राजा से बोले - 'वत्‍स! तुम्‍हे और कुछ चाहिए तो बोलो। मैं तुम्‍हे सबकुछ दे सकता हूं परन्‍तु औलाद प्राप्ति का आशीर्वाद मैं नही दे सकता। हां, तुम नारद के पास जाओ। वे तुम्‍हे अवश्‍य ही औलाद प्राप्ति का आशीर्वाद देंगे।'
       राजा नारद मुनि के पास गया और अपनी इच्‍छा बतायी। उसकी इच्‍छा सुनकर नारद मुनि हंसते हुए बोले - 'राजन, मैं तो  रमता जोगी हूं। मैं  तो स्‍वयं ईश्‍वर की आराधना में लीन रहता हूं। भला मैं आशीर्वाद का आकांक्षी व्‍यक्ति किसी और को क्‍या आशीर्वाद दे सकूंगा। जगत के मालिक भगवान विष्‍णु के होते भला मैं क्‍या  किसी को आशीर्वाद दूंगा। तुम मेरे आराध्‍य देव भगवान विष्‍णु के पास जाओ। वे अवश्‍य तुम्‍हारी इच्‍छा की पूर्त्ति करेंगे।' 
       राजा भगवान विष्‍णु के पास गया और औलाद की प्राप्ति हेतु आशीर्वाद मांगा। उसकी इच्‍छा सुनकर भगवान विष्‍णु मंद-मंद मुस्‍कुराते हुए बोले - 'मैं तुम्‍हे कोई  भी आशीर्वाद नही दे सकता। क्‍योंकि यहां अभी लक्ष्‍मी जी विद्यमान नही है। जब तक वह मुझे मशविरा नही देती, मैं किसी को कुछ नही दे सकता। क्‍योंकि मेरे इस लोक की मालकिन तो वही हैं। हां, तुम अपने राज्‍य के साधु के पास जाओ। वह अवश्‍य तुम्‍हारी इच्‍छा-पूर्त्ति में सहायक होंगे। '
        राजा भगवान विष्‍णु को प्रणाम कर वापस अपने राज्‍य में आ गया। उसने अपनी रानी से कहा -  'महारानी, देवताओं ने तो मुझे औलाद प्राप्ति का आशीर्वाद नही दिया, लेकिन भगवान विष्‍णु ने कहा है कि मैं अपने राज्‍य के साधु के पास जाऊं। वे मुझे अवश्‍य औलाद-प्राप्ति का आशीर्वाद देंगे। हमलोग कल सुबह ही साधु महाराज के पास चलेंगे।'
       अगले दिन सुबह राजा-रानी साधु की कुटिया के पास पहुंचे। साधु महाराज आंखे बंद किए ध्‍यानमग्‍न थे। राजा-रानी ने नजदीक पहुंचकर उन्‍हें प्रणाम किया। साधु महाराज ने आंखें खोलकर उनसे वहां आने का कारण पूछा। तब राजा ने भगवान विष्‍णु से हुई पुरी बातचीत साधु को बतायी। यह सुनकर कि भगवान विष्‍णु ने स्‍वयं राजा को उसके पास भ्‍ोजा है, साधु की आंखों में दर्प आ गया। वह राजा से बोला - 'महाराज, मैं आपकी इच्‍छा की पुर्त्ति अवश्‍य करूंगा। मांगिये, आपको जो मांगना है।'
        रानी ने हाथ जोड़कर कातर स्‍वर में कहा - 'साधु महाराज, मुझे औलाद नही है। मुझे औलाद होने का वरदान दें।'
        साधु ने रानी को औलाद-प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। राजा-रानी खुशी-खुशी वापस लौट गये। उचित अन्‍तराल के पश्‍चात रानी ने एक पुत्र को जन्‍म दिया। परन्‍तु राजा का पुत्र गूंगा पैदा हुआ। राजा ने सब तरह का इलाज कराया पर बच्‍चा गूंगा ही रहा। एक दिन सिपाहियों के साथ राजा का पुत्र जंगल में शिकार खेलने  गया। कुछ सिपाही आगे और कुछ पीछे थे, जबकि एक सिपाही राजकुमार के साथ चल रहा था। तभी पेड़ पर बैठा मोर बोल पड़ा, राजकमारके साथ चल रहे सिपाही ने तीर से उस मोर को मार गिराया। मोर के जमीन पर गिरते ही राजकुमार बोल पड़ा - 'क्‍यों बोला ? '
         सिपाही ने राजकुमार को बोलते सुना तो वह चमत्‍कृत हो उठा। उसने खुशी-खुशी यह बात सबको बतायी। राज्‍य भर में खुशियां मनाई गई। परन्‍तु राजकुमार जंगल मे से आकर फिर मौन रहने लगा। सभी उसकी आवाज सुनने को बेताब थे। परन्‍तु राजकुमार ने फिर जो मुंह बंद किया तो लाख प्रयास के बाद भी नही खोला। तब राजा ने क्रोधित हो झूठ बोलने का आरोप लगाकर सिपा‍ही को जेल में डाल दिया।   
        राजा राजकुमार को लेकर उसी साधु की कुटिया पर गया, जिन्‍होंने उसे औलाद होने का वरदान दिया था। परन्‍तु कुटिया में साधु महाराज नही थे। वहां उनका शिष्‍य था। शिष्‍य राजा के साथ राजकुमार को प्रणाम करता है। राजकुमार को देखकर उसकी आंखें में आंसू आ गये। उसने राजा से पूछा - 'महाराज, आप इस कुटिया में क्‍यों आये हैं ?  अब आपको क्‍या चाहिए ? ' 
        राजा चिंतित स्‍वर में बोला- 'साधु महाराज, आपके गुरू के आशीर्वाद से मुझे औलाद तो मिली पर यह मेरा पुत्र बोल नही पाता। कृपाकर आप इसे कंठ दे दिजिए, जिससे कि यह बोल सके।'    
        साधु महाराज ने राजकुमार के पास आकर पूछा - 'गुरूदेव, आपने जब राजा के यहां पुत्र के रूप में जन्‍म ले ही लिया है तो फिर आप बोलते क्‍यों नही,  क्‍या बात है ? '
       राजकुमार बोला - 'शि‍ष्‍य, जब राजा मेरे पास आए थे तो यह जानकर कि राजा की इच्‍छापूर्त्ति मैं ही कर सकता हूं,  भगवान विष्‍णु नही, मैं घमंड मे आ गया। मैंने बिना कुछ सोचे-समझे राजा को पुत्र प्राप्ति का  आशीर्वाद दे दिया। राजा के जाने के बाद नारद मुनि मेरे पास आए और बोले कि राजा के भाग्‍य में तो पुत्रयोग ही नही है। इसीलिए किसी भी देवता ने उन्‍हे आशीर्वाद नही दिया बल्कि दूसरे के पास भेजते रहे। अब मैं कर भी क्‍या सकता था। मेरे पास एक ही उपाय था कि अब पुत्र के रूप में राजा के यहां मैं ही जन्‍म लूं। अगर मैं राजा को सोच-समझ कर आशीर्वाद देता तो मुझे उनके यहां जन्‍म न लेना पड़ता। तभी मैंने निश्‍चय किया कि इस जन्‍म में मैं नही बोलूंगा। मेरे घमंड की यही सजा है। मैं पहली बार तब बोला जब मोर को बोलने के कारण अपने प्राण गंवाने पडे़। जिस सिपाही ने मेरी आवाज सुनी, उसने भी बिना सोचे-समझे शोर कर दिया और उसे भी अपने बोलने के कारण ही जेल जाना पड़ा। इसलिए मनुष्‍य को जब भी बोलना पड़े, सोच-समझ कर कम बोलना चाहिए। '