tag:blogger.com,1999:blog-82856709176741643152024-03-04T21:34:57.081-08:00सविता सिंहसच,सपना,साहित्य,संयोग एवं सबका साथsavitahttp://www.blogger.com/profile/14294057778644051870noreply@blogger.comBlogger19125tag:blogger.com,1999:blog-8285670917674164315.post-80168482334527766422016-01-07T02:03:00.002-08:002016-01-07T02:03:58.727-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhoWti3ANemo5YPhPyrqkzBrKueqqF4PaglbeCo0lFqrdGsBZrNGkpwmsz9suUn6aFmZUHmLXlOq5MVkYQ6tCLDzLv6-gqG0U6PtmryubJroehJfVVS9iiWBb2jzHOafzbNWqYdpNubw1U/s1600/1451456932_040840700.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhoWti3ANemo5YPhPyrqkzBrKueqqF4PaglbeCo0lFqrdGsBZrNGkpwmsz9suUn6aFmZUHmLXlOq5MVkYQ6tCLDzLv6-gqG0U6PtmryubJroehJfVVS9iiWBb2jzHOafzbNWqYdpNubw1U/s320/1451456932_040840700.jpg" width="274" /></a></div>
मेरी लघुकथाओं का संग्रह ई-बुक के रूप में...मातृभारती.कॉम ( <a href="http://matrubharti.com/" rel="nofollow" target="_blank">matrubharti.com</a> ) से......मोबाइल में डाउनलोड कर पढ़ा जा सकता है...<a class="profileLink" data-hovercard="/ajax/hovercard/user.php?id=100001763894210" href="https://www.facebook.com/trishantsinghh"><br /></a><br />
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savitahttp://www.blogger.com/profile/14294057778644051870noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8285670917674164315.post-27808192019035443322015-11-13T03:27:00.000-08:002015-11-13T03:27:39.386-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
साधरण सी घटना<br />
संजय ने घर में कदम रखते ही मां को हांक लगाई, '' मां, मां, कहां हो बड़े जोरो की भूख लगी है, खाना दो।''<br />
तभी उसकी नजर मां पर गई। वह मां जो उसकी एक आवाज पर खाना परोस देती थी, अाज सिर पर हाथ धरे बैठी रही। उसकी आवाज मां पर बेअसर। वह मां के नजदीक पहुंचा, हिलाया-डुलाया। फिर भी सब बेकार। संजय घबरा गया। लगभग चिल्ला कर उसने पूछा, '' मां, बताओगी भी कि क्या हुआ कि ऐसे ही सिर पर हाथ रखे बैठी रहोगी। मैं चिंता से मरा जा रहा हूं। बताओ ना क्या बात है। ''<br />
मां का सपाट स्वर गूंजा, '' तुम्हारा तो कोई दोस्त मर गया है फिर तुम्हे इतनी जोर से भूख क्यों लगी है। गाडि़यों में आग लगाकर तुम्हारी भूख शांत नही हुई।''<br />
संजय ने आश्चर्य से पहले अपनी मां को देखा और फिर सिर झटक कर बोला, '' अरे मां, वह मेरा कोई दोस्त-वोस्त नही था। कॉलेज का एक लड़का था जिसे किसी गाड़ी ने कुचल दिया तो हमने भी कुछ गाडि़यों में अाग लगा दी, बस। और क्या।''<br />
'' क्या मिला, दूसरे की गाड़ियों में आग लगाकर तुमलोगों को क्या मिला। क्या वह लड़का वापस आ गया। एक गाड़ी ने जाने-अनजाने में उसे कुचल दिया पर तुमलोगों ने तो न जाने कइयों को जान-बुझकर कुचल दिया। उनका क्या कुसूर था। तुमलोगों के गुस्से का खामियाजा बेकसूर लोगों को भुगतना पड़ा। इसका कोई हिसाब है तुम लोगों के पास। तुमलोगों ने जो आगजनी और पत्थरबाजी की उससे तुम्हे क्या मिला।'' मां का स्वर तेज होता गया और बोलते-बोलते वह हांफने भी लगी।<br />
संजय मां को पकड़कर बोला, '' मां तु इतनी इमोशनल क्यों हो रही है। यह तो साधारण सी बात है। आजकल तो रोज ऐसा होता ही रहता है, कहीं न कहीं। चलो अब ये सब छोड़ो, मुझे खाना दो। बड़े जोरों की भूख लगी है।''<br />
'' खाना नही बना है।'' मां का सपाट स्वर गूंजा<br />
'' खाना नही बना है, क्यों। खाना क्यों नही बना है। '' संजय की अावाज में आश्चर्य के साथ-साथ थोड़ी-सी खीझ भी थी।<br />
मां का तेज स्वर फिर गूंजा, '' जिससे चूल्हे में आग जलती थी उसे तो तुम आग के हवाले करके आए हो। जब तुम अपने दोस्तों के साथ यह साधारण्ा कारणामा कर रहे थे उस समय तुम्हारे बाबू जी भी अपनी ऑटो के साथ वहीं थे, जिसे उन्होंने कुछ दिन पहले ही लोन लेकर खरीदा था। वह तुम्हारी ओर दौड़े भी लेकिन तुम भीड़ के साथ घटिया कार्य में ऐसे मश्ागूल थे कि तुम्हारे कानों तक अपने बाबूजी की चीखें नही पहुंची। उनकी आंखों के सामने तुम सबने उनके सपने में आग लगा दी और आंखों का सपना जो सच हो गया था उसे तुमलोगों ने जलाकर खाक कर दिया।''<br />
अब सिर पर हाथ रखने की बारी संजय की थी।चेहरे पर पश्चाताप और आंखों में आंसू तैर रहे थे जो कि उस लड़के के मरने पर भी उसकी आंखों में नही आए थे।</div>
savitahttp://www.blogger.com/profile/14294057778644051870noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8285670917674164315.post-18519140846312501312014-11-13T19:56:00.001-08:002015-11-13T01:53:52.121-08:00लोक कथा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: x-large;"> मां का दिल</span><br />
<span style="font-size: x-large;"><br />
</span><br />
<span style="font-size: large;">एक मां थी। उसका एक बेटा था। मां ने उसे पाला-पोसा, बड़ा किया। उसे अपने पैरों पर खड़ा होने योग्य बनाया। सब कुछ व्यवस्थित होने पर मां ने उसका विवाह कर दिया। जैसा कि होता है, लड़का मां का भी ख्याल रखता और पत्नी का भी। लेकिन पत्नी को यह मंजूर नही था। वह बार-बार पति से एक ही सवाल करती ,' तुम किसे अधिक प्यार करते हो अपनी मां को या मुझे?' </span><br />
<span style="font-size: large;"> लड़का पशोपेश में पड़ जाता। वह पत्नी को खुश करने के लिए कह देता, 'मैं सिर्फ तुम्हे ही प्यार करता हूं। मेरा विश्वास करो।' </span><br />
<span style="font-size: large;"> परन्तु पत्नी कहां मानने वाली थी। वह बार-बार लगातार यही सवाल करती रहती। आखिरकार लड़के के सब्र का बांध एक दिन टूट ही गया। उसने पत्नी से सवाल किया, ' आखिर रोज-रोज यह सवाल कर तुम साबित क्या करना चाहती हो, क्या मैं झूठ बोल रहा हूं। आज तुम मुझे साफ-साफ बताओ, आखिर तुम चाहती क्या हो? ' </span><br />
<span style="font-size: large;"> पत्नी ने अपना मनचाहा सवाल पति के सामने रखा, ' अगर तुम वाकई सिर्फ मुझे ही चाहते हो तो तुम्हे इसका सुबूत देना होगा। बोलो तुम्हे मंजूर है? ' </span><br />
<span style="font-size: large;"> लड़के ने रोज-रोज की खिच-खिच से बचने के लिए कह दिया, 'हां, तुम बोलो तुम्हे क्या सुबूत चाहिए । मैं तुम्हारे इस बेतुके सवाल से परेशान हो गया हूं। बताओ मैं कैसे तुम्हे विश्वास दिलाऊं। मुझे क्या करना होगा ' </span><br />
<span style="font-size: large;"> पत्नी ने सपाट स्वर में पूछा, ' क्या तुम अपनी मां का कलेजा निकाल कर ला सकते हो? ' </span><br />
<span style="font-size: large;"> लड़के को काटो तो खुन नही। पर वह भी दिल का कमजोर निकला। वह वाकई पत्नी से प्यार करता था। पर पत्नी इस बात को समझ नही पाई और एक बेटे के हाथों जो नही होना चाहिए, वह हुआ। </span><br />
<span style="font-size: large;"> लड़का गया और मां का कलेजा निकाल कर पत्नी के पास ले जाने लगा, अपने प्यार का सुबूत पेश करने के लिए। तभी कमरे से निकलते समय लड़के का पैर चौखट से टकरा गया। वह गिरने-गिरने को हुआ तभी मां के कलेजे से आवाज आई, ' बेटा, चोट तो नही लगी ?' </span><br />
<span style="font-size: large;"><br />
</span></div>
savitahttp://www.blogger.com/profile/14294057778644051870noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8285670917674164315.post-31340210532257770912012-07-08T23:56:00.001-07:002012-07-08T23:56:22.403-07:00रेडियो प्लेबैक इंडिया: वर्षा ऋतु के रंग : मल्हार अंग के रागों का संग<a href="http://radioplaybackindia.blogspot.in/2012/07/raag-megh-and-megh-malhaar.html">रेडियो प्लेबैक इंडिया: वर्षा ऋतु के रंग : मल्हार अंग के रागों का संग</a><br />
<br />
बहुत ही सही समय है मन को मेघों के रंग में रंगकर भीग जाने का...कहां से आए बदरा...आसमान को निहारिए , बादल उमड़ते-घुमड़ते आपकी ओर आते दिख जायेंगे...फिर मन करेगा ' बरसो रे मेघा-मेघा...'savitahttp://www.blogger.com/profile/14294057778644051870noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8285670917674164315.post-57396500807316729632012-07-07T07:29:00.003-07:002012-07-07T07:29:47.517-07:00सविता सिंह<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: x-large;"><span style="font-size: large;">लोककथा </span></span><br />
<span style="font-size: x-large;"><span style="font-size: large;"> </span> <span style="font-size: x-large;">ठनठन गोपाल</span><span style="background-color: cyan;"><span></span> </span></span><br />
<br />
एक औरत थी। उसके पति का नाम ठनठन गोपाल था। औरत को पति का यह नाम बिल्कुल पसंद नही था। वह जब भी किसी के मुंह से अपने पति का नाम सुनती, चिढ़ उठती। वह पति से हमेशा नाम बदलने को कहती। परन्तु ठनठन गोपाल हंस कर टाल देता। कहता कि नाम में क्या रखा है। उसकी पत्नी अपनी जिद पर अड़ी रही कि वह उसका नाम बदल कर ही दम लेगी। उसकी यह जिद देखकर ठनठन गोपाल ने उसे अपना नाम बदलने की अनुमति दे दी।<br />
औरत ने खुशी-खुशी पंडित जी को बुलाया और पति का नाम बदलने के लिए शुभ मुहूर्त निकलवाया। शुभ मुहूर्त के समय नाम बदलने की प्रक्रिया शुरू हुई। पंडित जी ने उस औरत से पूछा, ' तुम अपने पति का क्या नाम रखना चाहती हो ? ' <br />
औरत पंडित जी को अपने पति का नया नाम बताने ही जा रही थी कि ठनठन गोपाल ने एक और प्रयास किया उसे समझाने का। उसने उससे कहा , 'भाग्यवान, एक बार फिर मै तुम्हें कहता हूं कि नाम मे कुछ नही रखा है। अगर तुम्हे मेरी बात का विश्वास नही होता तो एक बार बाहर जाकर कुछ लोगो से उनका नाम पूछकर आओ। अगर उनका नाम बल्कुल अर्थहीन न हुआ तो फिर तुम जो चाहो मेरा नाम रख सकती हो।
औरत पति की बात मानकर बाजार की ओर चल पड़ी। रास्ते में उसे एक मुर्दा जाता दिखा। उसने उसके साथ के आदमियों से उसका नाम पूछा। लोगों ने मृत व्यक्ति का नाम अमर सिंह बताया। नाम सुनकर औरत को बड़ा आश्चर्य हुआ। नाम अमर सिंह होते हुए भी वह क्यो मर गया! वह आगे चल पड़ी। आगे एक भिखारी मिला। औरत ने उसका नाम पूछा तो उसने बताया धनपति। नाम धनपति और काम भीख मांगना! वह मन ही मन हंसती हुई आगे बढ़ गई। आगे उसे एक औरत गोइठा पाथती हुई दिखी। औरत ने उसका नाम भी पूछने का विचार किया। उसने उसके पास जाकर उसका नाम पूछा, तो उसने बताया लक्ष्मी। नाम लक्ष्मी और गोइठा पाथ रही है! उसने सोचा, 'वाह री, नाम की लीला! अभी तो मैने नामों की पड़ताल शुरू ही की है तो यह हाल है। अगर कुछ देर और इसी तरह के नाम सुनने को मिल गये तो क्या होगा ? '
तभी उसे एक सेठ आता दिख गया। औरत ने सोचा कि सेठ का नाम तो उसके अनुरूप ही होगा। उसने सेठ से उसका नाम पूछा तो उसने बताया कौड़ीमल। कुछ और आगे बढ़ी तो एक अंधा व्यक्ति दिखा। लगे हाथ उसने उसका नाम भी पूछ लिया। उसने बताया नयनसुख। अब तो और किसी का नाम पूछने की उसने जरूरत ही नही समझी। वह तेजी से घर की ओर चल पड़ी। घर पहुंचकर वह ठनठन गोपाल से बोली, ' तुम ठीक ही कहते थे। नाम में कुछ नही रखा। जिसका नाम कौड़ीमल था उसके पास धन ही धन था और जिसका नाम धनपति था और लक्ष्मी था, दोनों ही भिखारी और गरीब थे। इससे अच्छा तो मेरा ठनठन गोपाल ही है। मुझे अब तुम्हारा नाम बदलने की जरूरत नही। तुम ठनठन गोपाल ही ठीक हो।'
इसके बाद उसे पति के नाम से कभी कोई चिढ़ महसूस नही हुई, क्योंकि उसे यह बात अच्छी तरह मालूम हो गई थी कि वास्तव में नाम में कुछ नही रखा।</div>savitahttp://www.blogger.com/profile/14294057778644051870noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8285670917674164315.post-34221761307047327702012-01-21T00:01:00.000-08:002015-11-21T06:38:10.158-08:00:: लोककथा ::<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">चतुर लड़की </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br />
</span></div>
<div style="text-align: justify;">
एक गरीब आदमी था। एक दिन वह राजा के पास गया और बोला- 'महाराज, मैं आपसे कर्ज मांगने आया हूं। कृपा कर आप मुझे पांच हजार रुपये दें। मैं पांच वर्ष के अंदर आपके रुपये वापस कर दूंगा।'</div>
<div style="text-align: justify;">
राजा ने उसकी बात पर विश्वास कर उसे पांच हजार रुपये दे दिए। पांच वर्ष बीत जाने के बाद भी जब उस व्यक्ति ने राजा के पांच हजार रुपये नही लौटाये तब राजा को मजबूरन उसके घर जाना पड़ा। लेकिन वहां वह व्यक्ति नही मिला। जब भी राजा वहां जाता बहाना बना कर उसे वापस भेज दिया जाता। एक दिन फिर राजा उस व्यक्ति के घर गया। वहां और कोई तो नही दिखा, एक छोटी लड़की बैठी थी। राजा ने उसी से पूछा- 'तुम्हारे पिता जी कहा हैं ?'</div>
<div style="text-align: justify;">
लड़की बोली- ' पिताजी स्वर्ग का पानी रोकने गये हैं। '</div>
<div style="text-align: justify;">
राजा ने फिर पूछा- 'तुम्हारा भाई कहां है ?' </div>
<div style="text-align: justify;">
लड़की बोली- 'बिना झगड़ा के झगड़ा करने गये हैं।'</div>
<div style="text-align: justify;">
राजा के समझ में एक भी बात नही आ रही थी। इसलिए वह फिर पूछता है-' तुम्हारी मां कहां है ?'</div>
<div style="text-align: justify;">
लड़की बोली- 'मां एक से दो करने गई है।'</div>
<div style="text-align: justify;">
राजा उसके इन ऊल-जुलूल जवाब से खीझ गया। वह गुस्से में पूछता है- 'और तुम यहां बैठी क्या कर रही हो ?' </div>
<div style="text-align: justify;">
लड़की हंसकर बोली- 'मैं घर बैठी संसार देख रही हूं।'</div>
<div style="text-align: justify;">
राजा समझ गया कि लड़की उसकी किसी भी बात का सीधा जवाब नही देगी। इसलिए उसे अब इससे इन बातों का मतलब जानने के लिए प्यार से बतियाना पडे़गा। राजा ने चेहरे पर प्यार से मुस्कान लाकर पूछा- 'बेटी, तुमने जो अभी-अभी मेरे सवालों के जवाब दिये, उनका मतलब क्या है ? मै तुम्हारी एक भी बात का मतलब नही समझ सका। तुम मुझे सीधे-सीधे उनका मतलब समझाओ।' </div>
<div style="text-align: justify;">
लड़की ने भी मुस्करा कर पूछा - 'अगर मैं सभी बातों का मतलब समझा दूं तो आप मुझे क्या देंगे ?'</div>
<div style="text-align: justify;">
राजा के मन में सारी बातों को जानने की तीव्र उत्कंठा थी। वह बोला- 'जो मांगोगी , वही दूंगा ।' </div>
<div style="text-align: justify;">
तब लड़की बोली- 'आप मेरे पिताजी का सारा कर्ज माफ कर देंगे तो मैं आपको सारी बातों का अर्थ बता दूंगी।' </div>
<div style="text-align: justify;">
राजा ने कहा- 'ठीक है, मैं तुम्हारे पिताजी का सारा कर्ज माफ कर दूंगा। अब तो सारी बातों का अर्थ समझा दो।' </div>
<div style="text-align: justify;">
लड़की बोली- 'महाराज, आज मैं आपको सारी बातों का अर्थ नही समझा सकती। कृपा कर आप कल आयें। कल मैं जरूर बता दूगी।' </div>
<div style="text-align: justify;">
राजा अगले दिन फिर उस व्यक्ति के घर गया। आज वहां सभी लोग मौजूद थे। वह आदमी, उसकी पत्नी, बेटा और उसकी बेटी भी। राजा को देखते ही लड़की पूछी- 'महाराज, आपको अपना वचन याद है ना ? '</div>
<div style="text-align: justify;">
राजा बोला- 'हां मुझे याद है। तुम अगर सारी बातों का अर्थ बता दो तो मैं तुम्हारे पिताजी का सारा कर्ज माफ कर दूंगा।' </div>
<div style="text-align: justify;">
लड़की बोली- 'सबसे पहले मैंने यह कहा था कि पिताजी स्वर्ग का पानी रोकने गये हैं, इसका मतलब था कि वर्षा हो रही थी और हमारे घर की छत से पानी चू रहा था। पिताजी पानी रोकने के लिए छत को छा (बना) रहे थे। यानि वर्षा का पानी आसमान से ही गिरता है और हमलोग तो यही मानते हैं कि आसमान मे ही स्वर्ग है। बस, पहली बात का अर्थ यही है। दूसरी बात मैंने कही थी कि भइया बिना झगडा़ के झगड़ा करने गये है। इसका मतलब था कि वे रेंगनी के कांटे को काटने गये थे। अगर कोई भी रेंगनी के कांटे को काटेगा तो उसके शरीर मे जहां-तहां कांटा गड़ ही जायेगा, यानि झगड़ा नही करने पर भी झगड़ा होगा और शरीर पर खरोंचें आयेगी। ' </div>
<div style="text-align: justify;">
राजा उसकी बातों से सहमत हो गया। वह मन-ही-मन उसकी चतुराई की प्रशंसा करने लगा। उसने उत्सुकता के साथ पूछा- 'और तीसरी-चौथी बात का मतलब बेटी ? ' </div>
<div style="text-align: justify;">
लड़की बोली- 'महाराज, तीसरी बात मैंने कही थी कि मां एक से दो करने गई है। इसका मतलब था कि मां रहर दाल को पीसने यानि उसे एक का दो करने गई है। अगर साबुत दाल को पीसा जाय तो एक दाना का दो भाग हो जाता है। यानि यही था एक का दो करना। रही चौथी बात तो उस समय मैं भात बना रही थी और उसमे से एक चावल निकाल कर देख रही थी कि भात पूरी तरह पका है कि नही। इसका मतलब है कि मैं एक चावल देखकर ही जान जाती कि पूरा चावल पका है कि नही । अर्थात चावल के संसार को मैं घर बैठी देख रही थी।' यह कहकर लड़की चुप हो गई।</div>
<div style="text-align: justify;">
राजा सारी बातों का अर्थ जान चुका था। उसे लड़की की बुद्धिमानी भरी बातों ने आश्चर्य में डाल दिया था। फिर राजा ने कहा- 'बेटी, तुम तो बहुत चतुर हो। पर एक बात समझ में नही आई कि यह सारी बातें तो तुम मुझे कल भी बता सकती थी, फिर तुमने मुझे आज क्यों बुलाया ?' </div>
<div style="text-align: justify;">
लड़की हंसकर बोली- ' मैं तो बता ही चुकी हूं कि कल जब आप आये थे तो मैं भात बना रही थी। अगर मैं आपको अपनी बातों का मतलब समझाने लगती तो भात गीला हो जाता या जल जाता, तो मां मुझे जरूर पीटती। फिर घर मे कल कोई भी नही था। अगर मैं इनको बताती कि आपने कर्ज माफ कर दिया है तो ये मेरी बात का विश्वास नही करते। आज स्वयं आपके मुंह से सुनकर कि आपने कर्ज माफ कर दिया है, जहां इन्हें इसका विश्वास हो जायेगा, वही खुशी भी होगी। ' </div>
<div style="text-align: justify;">
राजा लड़की की बात सुनकर बहुत ही प्रसन्न हुआ। उसने अपने गले से मोतियों की माला निकाल उसे देते हुए कहा- 'बेटी, यह लो अपनी चतुराई का पुरस्कार! तुम्हारे पिताजी का कर्ज तो मैं माफ कर ही चुका हूं। अब तुम्हे या तुम्हारे घरवालों को मुझसे बहाना नही बनाना पड़ेगा। अब तुम लोग निश्चिंत होकर रहो। अगर फिर कभी किसी चीज की जरूरत हो तो बेझिझक होकर मुझसे कहना।'</div>
<div style="text-align: justify;">
इतना कहकर राजा लड़की को आशीर्वाद देकर चला गया। लड़की के परिवारवालों ने उसे खुशी से गले लगा लिया। </div>
</div>
savitahttp://www.blogger.com/profile/14294057778644051870noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-8285670917674164315.post-53021201283669972092012-01-11T19:29:00.000-08:002012-01-11T19:29:07.053-08:00कविता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <span style="font-size: x-large;"> मां </span><br />
<span style="font-size: x-large;"><br />
</span><br />
मां <br />
रोज सपने में आती हो<br />
लोरी गाती हो <br />
गीत गुनगुनाती हो<br />
कहानियां सुनाती हो<br />
फिर न जाने कहां खो जाती हो<br />
मां <br />
आती तो हो <br />
सपने में ही सही<br />
गाती हो<br />
गुनगुनाती हो <br />
मुझे सोना आजकल बहुत ही अच्छा लगता है<br />
क्योंकि मां से मिलना जो होता है <br />
रात ही क्यों आजकल तो दिन में भी <br />
सोने का मौका निकाल लेती हूं<br />
क्योंकि दिन के सपने सच्चे जो होते हैं <br />
मन का भुलावा है <br />
यह एक छलावा है<br />
फिर भी मैं नींद के आगोश में जाना चाहती हूं <br />
क्योंकि मां तो आयेगी ही <br />
सपने में ही सही <br />
गायेगी, गुनगुनाएगी <br />
सपने में ही सही<br />
सपने सच्चे लगते हैं <br />
सपने अच्छे लगते हैं <br />
मां का साथ हो तो<br />
सपनों की दुनिया भी <br />
अपनी ही लगती है <br />
मां सपने में<br />
बहुत ही प्यारी लगती है <br />
<br />
</div>savitahttp://www.blogger.com/profile/14294057778644051870noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8285670917674164315.post-773647613260089062012-01-08T03:40:00.000-08:002012-01-08T03:49:18.779-08:00लोककथा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <span style="font-size: large;"> क्यों बोला</span><br />
<div><br />
</div><div><div style="text-align: justify;">एक राजा था। उसके पास किसी चीज की कमी नही थी, सिवा औलाद के। एक दिन राजा शंकर भगवान के पास गया और बोला - 'भगवन! देवों के देव मेरे पास किसी चीज की कमी नही है। पर इन सबका उपभोग करने वाली औलाद ही मेरे पास नही है। आप मुझे आशीर्वाद दें कि मुझे औलाद प्राप्त हो।'</div><div style="text-align: justify;"> श्ांकर भगवान राजा से बोले - 'वत्स! तुम्हे और कुछ चाहिए तो बोलो। मैं तुम्हे सबकुछ दे सकता हूं परन्तु औलाद प्राप्ति का आशीर्वाद मैं नही दे सकता। हां, तुम नारद के पास जाओ। वे तुम्हे अवश्य ही औलाद प्राप्ति का आशीर्वाद देंगे।' </div><div style="text-align: justify;"> राजा नारद मुनि के पास गया और अपनी इच्छा बतायी। उसकी इच्छा सुनकर नारद मुनि हंसते हुए बोले - 'राजन, मैं तो रमता जोगी हूं। मैं तो स्वयं ईश्वर की आराधना में लीन रहता हूं। भला मैं आशीर्वाद का आकांक्षी व्यक्ति किसी और को क्या आशीर्वाद दे सकूंगा। जगत के मालिक भगवान विष्णु के होते भला मैं क्या किसी को आशीर्वाद दूंगा। तुम मेरे आराध्य देव भगवान विष्णु के पास जाओ। वे अवश्य तुम्हारी इच्छा की पूर्त्ति करेंगे।' </div><div style="text-align: justify;"> राजा भगवान विष्णु के पास गया और औलाद की प्राप्ति हेतु आशीर्वाद मांगा। उसकी इच्छा सुनकर भगवान विष्णु मंद-मंद मुस्कुराते हुए बोले - 'मैं तुम्हे कोई भी आशीर्वाद नही दे सकता। क्योंकि यहां अभी लक्ष्मी जी विद्यमान नही है। जब तक वह मुझे मशविरा नही देती, मैं किसी को कुछ नही दे सकता। क्योंकि मेरे इस लोक की मालकिन तो वही हैं। हां, तुम अपने राज्य के साधु के पास जाओ। वह अवश्य तुम्हारी इच्छा-पूर्त्ति में सहायक होंगे। '</div><div style="text-align: justify;"> राजा भगवान विष्णु को प्रणाम कर वापस अपने राज्य में आ गया। उसने अपनी रानी से कहा - 'महारानी, देवताओं ने तो मुझे औलाद प्राप्ति का आशीर्वाद नही दिया, लेकिन भगवान विष्णु ने कहा है कि मैं अपने राज्य के साधु के पास जाऊं। वे मुझे अवश्य औलाद-प्राप्ति का आशीर्वाद देंगे। हमलोग कल सुबह ही साधु महाराज के पास चलेंगे।' </div><div style="text-align: justify;"> अगले दिन सुबह राजा-रानी साधु की कुटिया के पास पहुंचे। साधु महाराज आंखे बंद किए ध्यानमग्न थे। राजा-रानी ने नजदीक पहुंचकर उन्हें प्रणाम किया। साधु महाराज ने आंखें खोलकर उनसे वहां आने का कारण पूछा। तब राजा ने भगवान विष्णु से हुई पुरी बातचीत साधु को बतायी। यह सुनकर कि भगवान विष्णु ने स्वयं राजा को उसके पास भ्ोजा है, साधु की आंखों में दर्प आ गया। वह राजा से बोला - 'महाराज, मैं आपकी इच्छा की पुर्त्ति अवश्य करूंगा। मांगिये, आपको जो मांगना है।' </div><div style="text-align: justify;"> रानी ने हाथ जोड़कर कातर स्वर में कहा - 'साधु महाराज, मुझे औलाद नही है। मुझे औलाद होने का वरदान दें।' </div><div style="text-align: justify;"> साधु ने रानी को औलाद-प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। राजा-रानी खुशी-खुशी वापस लौट गये। उचित अन्तराल के पश्चात रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया। परन्तु राजा का पुत्र गूंगा पैदा हुआ। राजा ने सब तरह का इलाज कराया पर बच्चा गूंगा ही रहा। एक दिन सिपाहियों के साथ राजा का पुत्र जंगल में शिकार खेलने गया। कुछ सिपाही आगे और कुछ पीछे थे, जबकि एक सिपाही राजकुमार के साथ चल रहा था। तभी पेड़ पर बैठा मोर बोल पड़ा, राजकमारके साथ चल रहे सिपाही ने तीर से उस मोर को मार गिराया। मोर के जमीन पर गिरते ही राजकुमार बोल पड़ा - 'क्यों बोला ? '</div><div style="text-align: justify;"> सिपाही ने राजकुमार को बोलते सुना तो वह चमत्कृत हो उठा। उसने खुशी-खुशी यह बात सबको बतायी। राज्य भर में खुशियां मनाई गई। परन्तु राजकुमार जंगल मे से आकर फिर मौन रहने लगा। सभी उसकी आवाज सुनने को बेताब थे। परन्तु राजकुमार ने फिर जो मुंह बंद किया तो लाख प्रयास के बाद भी नही खोला। तब राजा ने क्रोधित हो झूठ बोलने का आरोप लगाकर सिपाही को जेल में डाल दिया। </div><div style="text-align: justify;"> राजा राजकुमार को लेकर उसी साधु की कुटिया पर गया, जिन्होंने उसे औलाद होने का वरदान दिया था। परन्तु कुटिया में साधु महाराज नही थे। वहां उनका शिष्य था। शिष्य राजा के साथ राजकुमार को प्रणाम करता है। राजकुमार को देखकर उसकी आंखें में आंसू आ गये। उसने राजा से पूछा - 'महाराज, आप इस कुटिया में क्यों आये हैं ? अब आपको क्या चाहिए ? ' </div><div style="text-align: justify;"> राजा चिंतित स्वर में बोला- 'साधु महाराज, आपके गुरू के आशीर्वाद से मुझे औलाद तो मिली पर यह मेरा पुत्र बोल नही पाता। कृपाकर आप इसे कंठ दे दिजिए, जिससे कि यह बोल सके।' </div><div style="text-align: justify;"> साधु महाराज ने राजकुमार के पास आकर पूछा - 'गुरूदेव, आपने जब राजा के यहां पुत्र के रूप में जन्म ले ही लिया है तो फिर आप बोलते क्यों नही, क्या बात है ? ' </div><div style="text-align: justify;"> राजकुमार बोला - 'शिष्य, जब राजा मेरे पास आए थे तो यह जानकर कि राजा की इच्छापूर्त्ति मैं ही कर सकता हूं, भगवान विष्णु नही, मैं घमंड मे आ गया। मैंने बिना कुछ सोचे-समझे राजा को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दे दिया। राजा के जाने के बाद नारद मुनि मेरे पास आए और बोले कि राजा के भाग्य में तो पुत्रयोग ही नही है। इसीलिए किसी भी देवता ने उन्हे आशीर्वाद नही दिया बल्कि दूसरे के पास भेजते रहे। अब मैं कर भी क्या सकता था। मेरे पास एक ही उपाय था कि अब पुत्र के रूप में राजा के यहां मैं ही जन्म लूं। अगर मैं राजा को सोच-समझ कर आशीर्वाद देता तो मुझे उनके यहां जन्म न लेना पड़ता। तभी मैंने निश्चय किया कि इस जन्म में मैं नही बोलूंगा। मेरे घमंड की यही सजा है। मैं पहली बार तब बोला जब मोर को बोलने के कारण अपने प्राण गंवाने पडे़। जिस सिपाही ने मेरी आवाज सुनी, उसने भी बिना सोचे-समझे शोर कर दिया और उसे भी अपने बोलने के कारण ही जेल जाना पड़ा। इसलिए मनुष्य को जब भी बोलना पड़े, सोच-समझ कर कम बोलना चाहिए। ' </div></div></div>savitahttp://www.blogger.com/profile/14294057778644051870noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8285670917674164315.post-19643974254171652892011-12-17T05:11:00.000-08:002011-12-17T05:13:45.592-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhuQ7oVSTJbIa6cPf6HJF6lPl9pSdbYSCsENnQDvJoYxsQMA7F4R_x1Q949Xzz2cQZRGonvdgDuy31UZZ54UsjSJJbnR45eXiYwZZtZBSgxFyfVBv2oUYGDjSoqar1TOexdTV4QVnoFjbs/s1600/IMG2977A.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhuQ7oVSTJbIa6cPf6HJF6lPl9pSdbYSCsENnQDvJoYxsQMA7F4R_x1Q949Xzz2cQZRGonvdgDuy31UZZ54UsjSJJbnR45eXiYwZZtZBSgxFyfVBv2oUYGDjSoqar1TOexdTV4QVnoFjbs/s320/IMG2977A.jpg" width="320" /></a></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br />
</div><br />
<b><span style="font-size: x-large;"> माई के चरण : कमल दल , जहां है स्वर्ग का वास </span></b><br />
<br />
मेरी माई हमेशा से हमलोगों के दुख-सुख्ा में संग-साथ। जब कभी भी हमे उनकी जरूरत पड़ी, वे हमेशा हमलोग के साथ एक पांव पर खड़ी रही। लेकिन अब ये पांव सिर्फ उनकी याद दिलायेंगे। अब पता नही हम मंझधार में फंसेंगे तो हमे बचाकर किनारे तक कौन लायेगा। फिर भी विश्वास नही होता कि मां नही है तो हमलोग डूब जायेंगे। मां का शरीर ही तो नही है, माई तो मेरे रोम-रोम और आत्मा मे रची-बसी है। माई सशरीर थी तो बहुत याद करती थी लेकिन अब जब नही है तो प्रत्येक क्षण वह मेरे दिल-दिमाग में रची-बसी हुई है। न मैं कभी माई को भूली थी और न कभी रहती दुनिया तक भूलूंगी। आखिरकार मैं उनकी दुलरी बेटी जो थी और हमेशा रहूंगी। माई के चरणों में मेरा रोज-रोज शत-शत प्रणाम।</div>savitahttp://www.blogger.com/profile/14294057778644051870noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8285670917674164315.post-63092300287318498542011-12-09T08:56:00.000-08:002011-12-09T08:56:58.768-08:00कहानी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> राजा और बूढ़ी मां<div><br />
</div><div> प्रतापगढ़ के राजा वीर प्रताप सिंह दरबार में फरियादियों की समस्याएं बड़े ही ध्यान से सुन रहे थे। हमेशा की तरह वे लोगों की समस्याओं का निदान भी करते चल रहे थे। एक-एक कर फरियादी खुशी<br />
<div>-खुशी सिर झुकाते राजा की जय-जयकार करते चले गये। जब दरबार का सारा काम निबट गया तब महाराज ने अपने महामंत्री से कहा, ' क्यों न हम आज रसोई की ओर चलें , देखे तो सही आखिर वहां हमारे लिए जो भोजन पकाया जाता है वह कैसे तैयार होता है।' </div><div> 'जी महाराज, अवश्य चला जाय। ' महामंत्री तत्परता से उठते हुए बोले। </div><div> रसोईघर के करीब पहुंचते ही व्यंजनों की खुशबू से राजा की भूख अचानक जाग गयी। यही हाल महामंत्री का भी था। दोनों एक-दूसरे की ओर देखकर हल्के से मुस्कुराए। रसोइये ने जब साक्षात महाराज को सामने देखा तो उसकी खुशी का ठिकाना नही रहा । उसने झट से व्यंजन बड़े आदर के साथ राजा और महामंत्री के सामने प्रस्तुत किया। राजा ना नही कर सके। खाते-खाते राजा खिड़की के समीप चले गये। तभी उन्होंने देखा कि एक कृशकाय वृद्धा लाठी के सहारे रसोईघर की नाली के पास खड़ी कुछ निहार रही थी। थोड़ी देर बाद वह वहां से चली गई। राजा को बहुत आश्चर्य हुआ। </div><div> अगले दिन राजा फिर दरबार का काम खत्म कर रसोईघर की खड़की के पास खडे़ हो गये। वृद्धा फिर आयी, जब वह जाने लगी तो उन्होंने महामंत्री को इशारे से बुलाया और कहा, 'इस बूढ़ी अम्मा को दरबार मे हाजिर किया जाय।'</div><div> महामंत्री सहमति में सिर हिलाकर बाहर चले गये। थोड़ी देर बाद महाराज के सामने वृद्धा को लाया गया। महाराज ने पूछा, 'अम्मा, तुम कौन हो, कहां रहती हो, तुम्हारे घर मे कौन-कौन है ? मैं दो दिन से देख रहा हूं, तुम रसोई के पास थोड़ी देर खड़ी रहती हो , फिर चली जाती हो, क्यों ? क्या तुम्हे कुछ चाहिए ? '</div><div> ' महाराज मैं अनाथ हूं, मेरा कोई ठिकाना नही है। मेरी आपसे विनती है कि मेरे लिए अपने रसोईघर के पीछे एक झोपड़ी बनवा दे।'</div><div> ' महामंत्री जी , आज ही बूढ़ी अम्मा के लिए रसोईघर के पीछे एक झोपड़ी बनवा दीजिए।' </div><div> दो-तीन महीने बाद राजा को वृद्धा की याद आयी। उन्होंने महामंत्री से कहा, ' अरे मैं तो उस बूढ़ी अम्मा को बिल्कूल ही भूल गया। उनका क्या हाल-चाल है, पता ही नही चला। ऐसा करते है कि अभी चलकर उनसे मिल लेते है। '</div><div> महामंत्री के साथ राजा वीर प्रताप सिंह रसोईघर के पिछवाड़े उस वृद्धा की झोपड़ी के सामने खड़े थे, तभी वृद्धा निकली। सामने महाराज को देखकर उसने झुककर प्रणाम किया। महाराज ने पूछा, 'तुम कौन हो ? यहां पर जिस बूढ़ी अम्मा के लिए यह झोपड़ी बनी थी, वह कहा है ? ' </div><div> ' महाराज, वह बूढ़ी अम्मा मैं ही हूं।' </div><div> ' परन्तु ऐसा कैसे हो सकता है ? कहां वह बीमार-सी कृशकाय वृद्धा और कहां आप, बिल्कुल स्वस्थ। आपको तो मैं पहचान ही नही पाया। आखिर ऐसा चमत्कार कैसे हो गया ? ' </div><div> 'महाराज, कोई चमत्कार नही हुआ है। बस , यह आपके रसोईघर के मांड़ का कमाल है। जब मैं यहां रहने आई तो जो मांड़ आपका रसोइया नाली मे बहा देता था, मैं उससे वह मांग कर पीने लगी। बस, परिणाम आपके सामने है।' </div><div>' बूढ़ी अम्मा, क्या वाकई मांड़ में इतना गुण है कि वह रोगी शरीर को निरोगी बना दे ? ' </div><div>' जी महाराज, चावल का सारा गुण तो मांड़ के अंदर ही होता है। आपका रसोइया मांड़ को व्यर्थ समझकर नाली में बहा देता था। यही देखकर मैंने आपसे यहां रहने की अनुमति मांगी थी। ' </div><div> ' अगर मांड़ में इतना गुण है तो फिर आज से मैं भी रोज मांड़ पिया करूंगा और साथ मे महामंत्री जी भी । क्यों महामंत्री जी, ठीक है ना! अम्मा आज से आप हमारे रसोईघर की प्रमुख होंगी। हमारे रसोईघर मे क्या और कैसे बनेगा यह आप तय करेंगी। जिससे कि भोजन का स्वाद और पौष्टिकता दोनों ही बनी रहे। ' इतना कहकर महाराज ने महामंत्री की ओर देखा। महामंत्री ने सिर झुकाकर सहमति जतायी। वृद्धा ने कृतज्ञता से हाथ जोड़कर दोनों को विदा किया।</div><div> </div><div> - सविता सिंह </div></div></div>savitahttp://www.blogger.com/profile/14294057778644051870noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8285670917674164315.post-57771783744079572732011-09-21T06:03:00.000-07:002015-11-13T01:57:07.513-08:00लघुकथा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;"> <span class="Apple-style-span" style="background-color: #f6b26b;"> परंपरा</span></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;"><span class="Apple-style-span" style="background-color: #f6b26b;"><br />
</span></span><br />
' मां एक बात पूछूं बुरा तो नही मानोगी... तुम मेरे साथ क्यो नही चलती ? ' मानसी घर के प्रतिकुल माहौल पर नजर फिराती रही।<br />
' कहां, कहां चलूं... तुम्हारेसाथ ?' आंखों की तरह ही मां की आवाज भी भर आयी।<br />
' मेरे घर और कहां ' स्वर मे आवेश। <br />
' अच्छा, तुम्हारे घर... हां ,हां क्यों नही जरूर चलूंगी... फिर यहां वापस पहुंचायेगा कौन ? क्या दामाद जी को समय मिल पायेगा ?' मां ने गौर से ताका। <br />
' मां दो-चार दिनों के लिए नही, मैं तो हमेशा के लिए आपको ले जाना चाहती हूं।' <br />
' मैं अपना घर छोड़कर हमेशा के लिए तुम्हारे घर क्यों चलूं... यहां मुझे दिक्कत ही क्या है ?' स्वर की तरह मां भी बदली-बदली सी।<br />
' यहां का हाल मैं साफ-साफ देख ही रही हूं...' उसने सामने आंगन से निकलती भाभी पर जलती हुई नजर डाली।<br />
' तु विभा की बात पर ध्यान मत दे... वह बिचारी दिन भर घर के कामों मे उलझी रहती है... आखिर वह भी तो इंसान है... उसे भी तो गुस्सा करने का हक है.. और गुस्सा आदमी उसी पर करता है, जिस पर वह अपना हक समझता है... क्या वह तुम पर आज तक कभी गुस्सा हुई है ?' मां ने द्ढ़ता से ताका। <br />
' आखिर आपको मेरे साथ चलने में दिक्कत ही क्या है ? ' तेज खीझ।<br />
' दिक्कत मुझे नही, बच्चों को होगी.. वे मेरे साथ ही सोते हैं, कहानी सुनते है... मेरे साथ्ा ही स्कूल जाते हैं... वे दिनभर मेरे आगे-पीछे लगे रहते हैं... कभी खाने की फरमाइश तो कभी खेलने की... पढ़ना भी वो मुझसे ही चाहते हैं.. विभा तो ऐसी ही हैं, पल में तोला,पल में माशा। गुस्सा चढ़ा नही कि किसी को नही छोड़ती और जैसे ही पारा उतर जाता है बदल जाती है। बेटी, सभी घरों में ऐसा ही होता है। जरूरत है तो बस इस बात की कि कोई एक ही भड़के... तभी घर टूटने से बचा रहेगा... उसके साथ मैं भी तू-तू मैं-मैं करूं तो बताओ इस घर मे क्या होगा... या तो वह इस घर मे रह जायेगी या फिर मैं ... फिर वह घर ही कैसा, जहां परिवार का प्रत्येक सदस्य हक से न रह सके। क्या तुम्हारे साथ जाकर रहना ही एकमात्र हल है ? अच्छा ,यह बताओ तुम्हारी सासू मां कहां है ? मां की नजरें जैसे मानसी के चेहरे के पास कुछ देखने की कोशिश करने लगी।<br />
मानसी सकपका गयी थी । उसने बात बदलनी चाही पर मां की प्रश्नभरी नजरों को लांघ नही सकी, ' सासू मां तो अभी छोटी ननद के पास है... मैने कई बार कहा कि मेरे साथ रहिये पर वह मानती ही नही ...' मानसी का स्वर कमजोर पड़ गया।<br />
' मैं अपनी बेटी के साथ रहूं, तुम्हारी सास अपनी बेटी के साथ रहे, उसकी सास अपनी बेटी के साथ रहे... आखिर यह सब क्या हो रहा है ? क्यो नही सास अपनी बहू को बेटी मानकर उसकी अच्छाइयों-बुराइयों के साथ खुशी से रहे... फिर बहू ही क्यो नही सास को मां मान लेती ? बेटी, तुम लोग यह कैसी परंपरा की नींव डाल रही हो ? मां के शब्दों मे नीम-सा कसैलापन उतर चुका था।</div>
savitahttp://www.blogger.com/profile/14294057778644051870noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-8285670917674164315.post-77390424266158649272011-09-18T01:43:00.000-07:002011-09-18T01:43:14.156-07:00शहरयार साहब को ज्ञानपीठ पुरस्कार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
शहरयार साहब को हमारी ओर से ज्ञानपीठ पुरस्कार की ढेरों बधाई...<br />
सीने में जलन आंखों में तूफान सा क्यों है।<br />
इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यों है।।<br />
<br />
कितना सही कहा है शहरयार साहब ने , यहां लोगो को परेशान होने की एक नयी बीमारी लग गई है। साहित्य में भी कुएं का मेढ़क होना सही नही लगता। कवि हरिवंश राय बच्चन के सुपूत्र के हाथों पुरस्कार प्राप्त करने से कहां शहरयार साहब और पुरस्कार की गरिमा को धक्का लगता है ? अमिताभ अपने-आपमे एक ऐसी शख्िसयत हैं जिनकी उपस्थिति से माहौल गरिमामय हो जाता है। एक और रिश्ता भी इनमें नजर आता है, वह है फिल्मों का । जब वे फिल्मों के लिए गजल लिख सकते हैं तो फिल्मवालों के हाथो पुरस्कार क्यो नही ग्रहण कर सकते ? ये विरोध के स्वर यह चेतावनी देते है कि साहित्यकार के बच्चे साहित्यकार होंगे तभी उन्हें साहित्यकारों की जमात मे शामिल किया जायेगा अन्यथा नही।<br />
कुछ गजलें आप सबों के लिए शहरयार साहब की...<br />
<br />
<br />
जो बुरा था कभी वह हो गया अच्छा कैसे,<br />
वक्त के साथ मैं इस तेजी से बदला कैसे।<br />
<br />
इस मोड़ के आगे भी कई मोड़ है वर्ना<br />
यूं मेरे लिए तू कभी ठहरा नही होता।<br />
<br />
ये सफर वो है कि रुकने का मुकाम इसमे नही।<br />
मैं जो थम जाऊं तो परछाईं को चलता देखूं।। <br />
</div>savitahttp://www.blogger.com/profile/14294057778644051870noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8285670917674164315.post-56446097525853491602011-09-12T20:06:00.000-07:002011-09-12T20:06:52.181-07:00लोककथा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;"> </span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;"> <span class="Apple-style-span" style="color: #38761d;"> बैल और मनुष्य</span></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;"><br />
</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> ब्रह्मा जी ध्यान लगाए बैठे थे। उन्होंने देखा कि धरती पर मनुष्यों का जीवन बहुत ही अस्त-व्यस्त है। जिसके मन में जब आता खाता, नहाता या सोता । कोई किसी का ख्याल न करता। यह सब देखकर ब्रह्मा जी को बड़ी चिंता हुई। वे विचार करने लगें कि क्या उपाय किया जाय, जिससे धरती पर मनुष्यों का जीवन सुचारू रूप से चल सके। अगर जल्द ही कोई उपाय न किया गया तो धरती का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जायेगा। कुछ देर विचार मग्न हो वे उपाय सोचते रहे। उन्हें जल्द ही एक उपाय मिल भी गया। तब वे फिर सोचने लगें कि यह उपाय धरती वासियो के पास किसके जरिए पहुंचाया जाय। तभी उन्हें बैल आता दिख गया। उन्होंने उसे पास बुलाया। पास आकर बैल ने उन्हें प्रणाम किया। ब्रह्मा जी बोलें, ' तुम तो देख ही रहे हो। धरती पर जीवन कितना अस्त.व्यस्त है। न खाने का कोई नियम है और न नहाने-सोने का। तुम ऐसा करो, धरती पर जाओ और सभी मनुष्यों से कहो कि वे दिन मे तीन बार नहायें, एक बार खायें और एक ही बार सोयें। समझ गये ना। यही बात याद करके जाओ और उन्हें कहना। कुछ और मत कहना।' </span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> बैल ने स्वीकृति मे सिर हिला दिया और ब्रह्मा जी को प्रणाम कर , आज्ञा लेकर धरती की ओर चल पड़ा। धरती पर पहुंच कर उसने सभी मनुष्यों को बुलाया और कहा, ' भगवान ब्रह्मा जी ने तुम लोगों को तीन बार खाने, एक बार नहाने और एक बार सोने को कहा है।' </span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> मनुष्यों ने उसकी बात मान, उसी तरह आचरण करने का वचन दिया। तब संतुष्ट होकर वह ब्रह्मा जी के पास लौटा और बोला, ' भगवन, जैसा आपने कहा था, वैसा ही मैंने धरती वासियों को कह दिया। उन्होंने आपकी बात पर अमल करने का मुझे वचन दिया है।' </span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> ब्रह्मा जी बोले, ' वत्स, मैंने तुमसे क्या कहा था, धरती वासियो को बोलने को, उसे जरा एक बार फिर से मेरे सामने कहो तो।'</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> बैल ने कहा, ' मैंने उन्हें तीन बार खाने, एक बार नहाने और एक बार सोने को कहा है।'</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> यह सुनकर मुर्ख बैल पर उन्हें क्रोध आ गया। उन्हें लगा कि अगर मनुष्य दिन मे तीन बार खायेगा तो धरती पर अनाज का अकाल ही हो जायेगा। एक समय के पश्चात सभी मनुष्य भूख से मरने लगेंगे। उन्होंने बैल को शाप दया, ' तूने अपनी मूर्खता के कारण धरती वासियों को तीन बार खाने को कहा है। इसलिए तू धरती पर जा और हल मे जुतकर अन्न पैदा कर, जिससे कि सभी मनुष्य तीन समय खा सकें।'</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> कहा जाता है कि तभी से बैल धरती पर हल में जुतकर मनुष्यों के लिए तीन समय के भोजन के लिए अन्न उपजाता है। और आज भी वह मूर्खता का प्रतीक है।</span></div>savitahttp://www.blogger.com/profile/14294057778644051870noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8285670917674164315.post-67897291026991558942011-09-04T22:38:00.000-07:002016-04-28T00:28:03.709-07:00बाल कहानी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span class="Apple-style-span" style="color: #351c75;"><b><br />
</b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> <span class="Apple-style-span" style="color: #741b47;"> चंदन की खुशबू </span> </span><br />
<br />
चंदन और कुंदन दोनों भाई थे। दोनों एक ही कक्षा मे पढ़ते थे। लेकिन दोनों के स्वभाव मे बहुत अंतर था। चंदन जहां बहुत अधिक उदंड था, कुंदन उतना ही शांत। चंदन हमेशा कुंदन से झगड़ता पर कुंदन कुछ न कहता। यहां तक कि चंदन अपने माता-पिता की बातों को भी नही मानता , सिर्फ अपनी मर्जी से जो मन में आता करता। हमेशा मुहल्ले के लड़कों से झगड़ता, कभी उन्हें मारता तो कभी उनके खिलौनों को छीन लेता। उसके इस व्यवहार से उसके माता-पिता बहुत परेशान थे। वे उसे समझा कर थक-हार चुके थे, लेकिन उसके ऊपर कोई असर नही हुआ। गुस्से में वे उसे पीट भी चुके थे। फिर भी उसकी शरारतें कम न होती। थक-हार कर उन्होंने निश्चय किया कि चंदन की टीचर से बात करनी चाहिए। शायद वह उसे सही रास्ते पर ला सके। <br />
अगले दिन चंदन के माता-पिता उसकी टीचर से मिलें। उनकी सारी बातें सुनकर टीचर ने कहा , ' क्या? चंदन इतना ज्यादा शैतान है? स्कूल मे थोड़ी-बहुत शैतानी करता है, जो कि प्रत्येक बच्चा करता है। उसकी शैतानी को हमलोग बचपना समझ कर ध्यान नही देते थे। क्योंकि जितना अच्छा वह पढ़ने-लिखने मे है, उतना ही खेल-कूद में भी। लेकिन उसकी ये अच्छाईयां इस समय फीकी पड़ जाती हैं, जब वह आप लोगो से बदजुबानी करता है। यह बहुत ही बुरी बात है। खैर, आप लोग चिंता न करें। मैं कोशिश करूंगी कि वह सचमुच अच्छा बच्चा बन जाये।' चंदन के माता-पिता के जाने के बाद टीचर गहरी सोच मे पड़ गई।<br />
कुछ दिनों के पश्चात स्कूल में बच्चों को बताया जाता है कि उन्हें पिकनिक पर ले जाया जायेगा । सभी बच्चे बहुत खुश होते हैं। चंदन बहुत ज्यादा खुश होता है। घर आकर वह अपनी मम्मी से ढेर सारी खाने की चीजों की फरमाइश कर डालता है जो वह अपने साथ पिकनिक पर ले जाना चाहता है। जब मम्मी कहती है कि टीचर ने कुछ भी साथ ले जाने से मना किया है तो वह रोने-चिल्लाने लगता है, तब मजबूरन उसकी मम्मी सारी चीजें देने का वादा करती हैं। चंदन अपने साथ खिलौने भी ले जाना चाहता है। कुछ अच्छे खिलौने वह अपने बैग में रख लेता है ।<br />
निश्िचत समय पर सभी बच्चे अपने माता-पिता के साथ आते हैं और टीचर उनका नाम ले-लेकर स्कूल बस मे चढ़ाने लगती हैं। जब चंदन अपनी पीठ पर बैग लटका कर बस में चढ़ने लगता है तो टीचर उसे रोकती है और कहती है, ' चंदन, इस बैग में क्या है? तुम अपने साथ कुछ भी नही ले जा सकते।' टीचर की बात सुनकर चंदन रूआंसा हो जाता है। वह कुछ कहने के लिए मुंह खोलना ही चाह रहा था कि उसकी टीचर बोली, ' चंदन , हमलोग ढ़ेर सारी खाने की चीजें और खेलने का सामान ले जा रहे हैं।' इतना कहकर वे चंदन का बैग उसके पिता को दे देती है चंदन गुस्से मे एक लड़के को धक्का दे कर आगे बढ़ जाता है ।<br />
बस चल पड़ती है। सभी बच्चे गाड़ियों, पशुओं और हरे-भरे पेडो़ को देखने में मशगूल थे। पर चंदन बिल्कुल उदास था। टीचर ने चंदन को अपने पास बुलाकर बिठाया और उससे बातें करने लगी। वह उससे सवाल भी पूछती जा रही थी, जिसका जवाब वह दे रहा था। थोड़ी देर बाद वह भी मन मे उठ रहे सवालों को टीचर से पूछने लगा। तभी उसे एक खास तरह की खुशबू का अहसास हुआ। उसने टीचर से पूछा, ' टीचर, ये खुशबू जो आ रही है चंदन की है ना। टीचर ने कहा, ' हां चंदन, ये खुशबू चंदन की ही है। देखो वो पेड़ चंदन का है, उसी से खुशबू आ रही है। तभी चंदन चिल्लाता है, ' सांप, सांप , टीचर उस पेड़ पर सांप है।' टीचर बोली, ' हां देखो , चंदन का पेड़ कितना अच्छा है। उससे सांप लिपटा है , वह अपने मुंह से विष भी छोड़ रहा है। लेकिन चंदन की सुगंध उससे विषैली नही हो रही बल्कि वह अपनी पहले वाली सुगंध ही बिखेर रही है। वह अपना अच्छा स्वभाव नही छोड़ रही। क्यों कि जब उसके साथ रहकर सांप अपना बुरा स्वभाव नही छोड़ रहा तो वह अपना अच्छा स्वभाव क्यों छोड़े। बोलो, मैं ठीक कह रही हूं न। चंदन, तुम्हारा नाम भी तो चंदन है , क्यों नही तुम भी इस चंदन के पेड़ की तरह अच्छे चंदन बन जाते हो । बोलो, बनोगे ना अच्छे चंदन, सबके प्यारे चंदन।'<br />
टीचर की बात सुनकर चंदन धीरे-से मुस्कुरा दिया । उसने धीरे से कहा , ' हां टीचर , मैं अपने माता-पिता का अच्छा चंदन बनूंगा। मै सबका प्यारा चंदन बनूंगा । मै वादा करता हूं।' इतना कहकर वह हंसते हुए दौड़कर अपने साथियों के बीच जाकर हंसी-मजाक करने लगा । पिकनिक से लौटकर जब चंदन घर पहुंचा तो उसका व्यवहार देखकर सभी आश्चर्यचकित रह गये। क्योंकि जो चंदन पिकनिक पर गया था, बिल्कुल उसका दूसरा रूप वापस आया था। उसके इस बदले रूप को देखकर माता-पिता बहुत ही प्रसन्न हुए। वे अब चंदन को भी खुब प्यार करने लगें। क्योंकि चंदन अब सचमुच का अच्छा बच्चा जो बन गया था।</div>
savitahttp://www.blogger.com/profile/14294057778644051870noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8285670917674164315.post-18810005186162637282011-08-04T22:29:00.000-07:002011-08-04T22:47:48.791-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="color: blue;">लघुकथा</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;"><span class="Apple-style-span" style="color: red;">बोनसाई की छाया </span> </span><br />
<div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> "दादी, आप क्या कर रही हैं?" नन्ही गोपी बगीचे में खेलते-खेलते अचानक आकर प्रतिभा से पूछती है।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">"</span><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">मै इस पेड़ को पानी से सींच रही हूं, इसकी सेवा कर रही हूं, जिससे कि यह भी एक बडा़-सा पेड बन जाए।</span><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">"</span><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> प्रतिभा के चेहरे पर दर्द की एक परत-सी बिछ गई।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">"</span><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">हा-हा-हा, दादी आप इसे पेड़ कैसे बना सकती हैं। यह तो बोनसाई का पेड़ है जो हमेशा छोटा ही रहता है। अच्छा! इसी से माली काका मुझसे कई बार पूछ चुके है कि इस पेड़ को जमीन में मैंने लगाया है क्या। जब भी मैं सिर हिलाकर ना करती तो वे मुझे अविश्वास भरी नजरों से देखते। मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि जमीन में लगाने से यह पेड़ बन जायेगा। जबकि वे इसे बोनसाई बनाना चाहते हैं। दादी, पेड़ और बोनसाई कैसे बनाए जाते है?</span><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">"</span><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> नन्ही गोपी की आंखों में जिज्ञासा थी।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">"</span><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">पेड़ जमीन में लगाया जाता है और उसे खाद-पानी दिया जाता है जिससे उसकी जड़ें जमीन में गहरी पैठ जाती हैं और वह अपने मन-मुताबिक जितना चाहे उतना टहनियों सरीखी बांहें फैला सकता है और आसमान की उंचाइयों को छू सकता है। जबकि बोनसाई को बनाने के लिए पहले उसकी जड़ों को काटा जाता है। फिर उसकी टहनियों को काट दिया जाता है। और ऐसा तब-तब किया जाता है जब-जब वह टहनियों सरीखी अपनी बांहें आसमान की ओर फैलाना चाहती है। जब-जब वह मिट्टी में जड़ जमा लेती है उसे मिट्टी से बाहर निकाला जाता है और उसकी जड़ों को काट दिया जाता है और नयी मिट्टी और खाद के हवाले कर दिया जाता है।</span><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">"</span><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> प्रतिभा की आवाज लड़खडा़ने लगी थी। </span></div><div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> '' अच्छा दादी, अब मैं खेलने जा रही हूं।</span><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">"</span><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> नन्ही गोपी मचलते हुए बोली । </span><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">जैसे ही गोपी जाने के लिए मुडी़ प्रतिभा ने उसका हाथ पकड़कर रोका और बोली,</span><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">"</span><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> बेटी, तुम भी पेड़ की तरह बनना। मेरी तरह बोनसाई कभी</span><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> नही बनना।</span><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">"</span></div></div>savitahttp://www.blogger.com/profile/14294057778644051870noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8285670917674164315.post-29694727100789136082011-08-04T09:06:00.000-07:002011-08-04T22:47:10.290-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="color: red; font-size: x-large;">तीर्थयात्रा </span><br />
<span style="font-size: x-large;"><br />
</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">"प्रणाम चाची!'' किशन ने झुककर सरला देवी के चरणों को स्पर्श किया।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">"खुश रहो बेटा !" उनका चेहरा खिल उठा।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">"चाची अब तो चारों बेटों का शादी-ब्याह हो गया। उन्हें बाल-बच्चे भी हो गये। अब तो बेटों से कहिए, आपको चारों धाम घुमा दें।'' किशन चाची के नजदीक बैठते हुए बोला।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> " हां बेटे ! चारो धाम बेटे क्या घुमाएंगे, मैं स्वयं ही चारों धाम घूमती रहती हूं। चारों के यहां तीन-तीन महीने की पारी है। उनके ही बाल-बच्चों के दर्शन कर निहाल हो जाती हूं। जैसे ही तीन महीने पूरे होते हैं, दूसरे धाम पर जाने के लिए बोरिया-बिस्तर समेट लेना होता है... अब तो इन्हीं चारों धामों में घूम-घूम कर अपने जीवन को सार्थक कर रही हूं।''</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> किशन चाची का चेहरा पढने की कोशिश कर रहा था। चाची का चेहरा निर्विकार था । </span></div>savitahttp://www.blogger.com/profile/14294057778644051870noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8285670917674164315.post-72042204598897788302011-07-12T02:58:00.000-07:002011-07-12T02:58:24.665-07:00... मेरी मां ...<a aria-hidden="true" class="UIImageBlock_Image UIImageBlock_SMALL_Image" data-hovercard="/ajax/hovercard/hovercard.php?id=100002302552240" href="http://www.facebook.com/profile.php?id=100002302552240" style="color: #3b5998; cursor: pointer; float: left; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; margin-right: 8px; text-decoration: none;" tabindex="-1"><img alt="Savita Singh" class="uiProfilePhoto uiProfilePhotoLarge img" height="640" src="http://profile.ak.fbcdn.net/hprofile-ak-snc4/260984_100002302552240_1846132_q.jpg" style="border-bottom-width: 0px; border-color: initial; border-left-width: 0px; border-right-width: 0px; border-style: initial; border-top-width: 0px; display: block; height: 50px; text-align: justify; width: 50px;" width="640" /></a><br />
<div class="UIImageBlock_Content UIImageBlock_SMALL_Content" style="display: table-cell; vertical-align: top; width: 10000px;"><div style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px;"><div class="rfloat" style="float: right; text-align: justify;"><abbr class="timestamp" data-date="Fri, 06 May 2011 18:48:39 -0700" style="border-bottom-color: initial; border-bottom-style: none; border-bottom-width: initial; color: #aaaaaa; cursor: default; display: inline-block; vertical-align: top;" title="Saturday, May 7, 2011 at 7:18am">May 7</abbr></div><strong><a data-hovercard="/ajax/hovercard/hovercard.php?id=100002302552240" href="http://www.facebook.com/profile.php?id=100002302552240" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Savita Singh</a></strong></div><div><ul class="uiList body contentListWidth" style="list-style-type: none; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 2px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"><li class="uiListItem uiListVerticalItemBorder" style="border-bottom-width: 0px; border-left-width: 0px; border-right-width: 0px; border-top-width: 0px; display: block;"><div class="subject" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; margin-bottom: 2px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 4px; overflow-x: hidden; overflow-y: hidden; text-align: justify; width: 350px;"><b><br />
</b></div><div class="content" id="0zgERvu5wt0BXBxJCTmuxQ" style="overflow-x: hidden; overflow-y: hidden; padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 2px; width: 350px; word-wrap: break-word;"><div style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px; text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;">मां, मेरी मां </span><span class="Apple-style-span" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;"> </span></div><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;"><br />
</span></div><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;"> प्यारी...</span></div><span class="Apple-style-span" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;"><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"> सुन्दर...</div></span><span class="Apple-style-span" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;"><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">हंसता चेहरा</div></span><span class="Apple-style-span" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;"><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">दमकता चेहरा </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;">मस्ती के घोल</div></span><span class="Apple-style-span" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;"><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"> आशीष के बोल</div></span><span class="Apple-style-span" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;"><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">सबकी खुशी में</div></span><span class="Apple-style-span" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;"><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">शामिल</div></span><span class="Apple-style-span" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;"><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">सबके दुःख में नहीं</div></span><span class="Apple-style-span" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;"><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">क्योंकि</div></span><span class="Apple-style-span" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;"><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">जिस पर भी</div></span><span class="Apple-style-span" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;"><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">मां के वटवृक्ष की</div></span><span class="Apple-style-span" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;"><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">छाया है</div></span><span class="Apple-style-span" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;"><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">दुःख उसके पास</div></span><span class="Apple-style-span" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;"><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">फटक नहीं पाया है</div></span><span class="Apple-style-span" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;"><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">हां, ऐसी है मेरी मां</div></span><span class="Apple-style-span" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;"><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">मेरी मां</div></span><span class="Apple-style-span" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;"><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">सिर्फ</div></span><span class="Apple-style-span" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;"><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">मेरी</div></span><span class="Apple-style-span" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;"><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">मां...</div></span></div></li>
</ul></div><br />
<blockquote class="webkit-indent-blockquote" style="border: none; margin: 0 0 0 40px; padding: 0px;"><div><ul class="uiList body contentListWidth" style="list-style-type: none; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 2px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"><li class="uiListItem uiListVerticalItemBorder" style="border-bottom-width: 0px; border-left-width: 0px; border-right-width: 0px; border-top-width: 0px; display: block;"><div class="content" style="overflow-x: hidden; overflow-y: hidden; padding-bottom: 1px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 2px; width: 350px; word-wrap: break-word;"><span class="Apple-style-span" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;"><div style="text-align: justify;">-सविता सिंह</div></span></div></li>
</ul></div></blockquote></div>savitahttp://www.blogger.com/profile/14294057778644051870noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8285670917674164315.post-20667932906127321972011-07-12T00:56:00.000-07:002011-07-12T00:56:50.732-07:00सच,सपना,साहित्य,संयोग एवं सबका साथsavitahttp://www.blogger.com/profile/14294057778644051870noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8285670917674164315.post-8962529693419801002011-07-12T00:52:00.001-07:002011-07-12T00:52:36.495-07:00savitahttp://www.blogger.com/profile/14294057778644051870noreply@blogger.com0