Saturday 17 December 2011



 माई के चरण :  कमल दल , जहां है स्‍वर्ग का वास

मेरी माई हमेशा से हमलोगों के दुख-सुख्‍ा में संग-साथ। जब कभी भी हमे उनकी जरूरत पड़ी, वे हमेशा हमलोग के साथ एक पांव पर खड़ी रही। लेकिन अब ये पांव सिर्फ उनकी याद दिलायेंगे। अब पता नही हम मंझधार में फंसेंगे तो हमे बचाकर किनारे तक कौन लायेगा। फिर भी विश्‍वास नही होता कि मां नही है तो हमलोग डूब जायेंगे। मां का शरीर ही तो नही है, माई तो मेरे रोम-रोम और आत्‍मा मे रची-बसी है। माई सशरीर थी तो बहुत याद करती थी लेकिन अब जब नही है तो प्रत्‍येक क्षण वह मेरे दिल-दिमाग में रची-बसी हुई है। न मैं कभी माई को भूली थी और न कभी रहती दुनिया तक भूलूंगी। आखिरकार मैं उनकी दुलरी बेटी जो थी और हमेशा रहूंगी। माई के चरणों में मेरा रोज-रोज शत-शत प्रणाम।

2 comments:

  1. आपका दृष्टिकोण सही है। 'माता -निर्माता'होती है और अपने कृत्यों के जरिये आपकी माता जी भी चीर अमर रहेंगी। उन्हे श्रद्धांजली। हम उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं।

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  2. रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । नव वर्ष -2012 के लिए हार्दिक शुभकामनाएं । धन्यवाद ।

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