Thursday, 7 January 2016

मेरी लघुकथाओं का संग्रह ई-बुक के रूप में...मातृभारती.कॉम ( matrubharti.com ) से......मोबाइल में डाउनलोड कर पढ़ा जा सकता है...

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Friday, 13 November 2015

साधरण सी घटना
संजय ने घर में कदम रखते ही मां को  हांक लगाई, '' मां, मां, कहां हो बड़े जोरो की भूख लगी है, खाना दो।''
तभी उसकी नजर मां पर गई। वह मां जो उसकी एक आवाज पर खाना परोस देती थी, अाज सिर पर हाथ धरे बैठी रही। उसकी आवाज मां पर बेअसर। वह मां के नजदीक पहुंचा, हिलाया-डुलाया। फिर भी सब बेकार। संजय घबरा गया। लगभग चिल्‍ला कर उसने पूछा, '' मां, बताओगी भी कि क्‍या हुआ कि ऐसे ही सिर पर हाथ रखे बैठी रहोगी। मैं चिंता से मरा जा रहा हूं। बताओ ना क्‍या बात है। ''
मां का सपाट स्‍वर गूंजा, '' तुम्‍हारा तो कोई दोस्‍त मर गया है फिर तुम्‍हे इतनी जोर से भूख क्‍यों लगी है। गाडि़यों में आग लगाकर तुम्‍हारी भूख शांत नही हुई।''
संजय ने आश्‍चर्य से पहले अपनी मां को देखा और फिर सिर झटक कर बोला, '' अरे मां, वह मेरा कोई दोस्‍त-वोस्‍त नही था। कॉलेज का एक लड़का था जिसे किसी गाड़ी ने कुचल दिया तो हमने भी कुछ गाडि़यों में अाग लगा दी, बस। और क्‍या।''
'' क्‍या मिला, दूसरे की गाड़‍ियों में आग लगाकर तुमलोगों को क्‍या मिला। क्‍या वह लड़का वापस आ गया। एक गाड़ी ने जाने-अनजाने में उसे कुचल दिया पर तुमलोगों ने तो न जाने कइयों को जान-बुझकर कुचल दिया। उनका क्‍या कुसूर था। तुमलोगों के गुस्‍से का खामियाजा बेकसूर लोगों को भुगतना पड़ा। इसका कोई हिसाब है तुम लोगों के  पास। तुमलोगों ने जो आगजनी और पत्‍थरबाजी की उससे तुम्‍हे क्‍या मिला।'' मां का स्‍वर तेज होता गया और बोलते-बोलते वह हांफने  भी लगी।
संजय मां को पकड़कर बोला, '' मां तु इतनी इमोशनल क्‍यों हो रही है। यह तो साधारण सी बात है। आजकल  तो रोज ऐसा होता ही रहता है, कहीं न कहीं। चलो अब ये सब छोड़ो, मुझे खाना दो। बड़े जोरों की भूख लगी है।''
'' खाना नही बना है।'' मां का सपाट स्‍वर गूंजा
'' खाना नही बना है, क्‍यों। खाना क्‍यों नही बना है। '' संजय की अावाज में आश्‍चर्य के साथ-साथ थोड़ी-सी खीझ भी थी।
मां का तेज स्‍वर फिर गूंजा, '' जिससे चूल्‍हे में आग जलती थी उसे तो तुम आग के हवाले करके आए हो। जब तुम अपने दोस्‍तों के साथ यह साधारण्‍ा कारणामा  कर रहे थे उस समय तुम्‍हारे बाबू जी भी अपनी ऑटो के साथ वहीं थे, जिसे उन्‍होंने कुछ दिन पहले ही लोन लेकर खरीदा था। वह तुम्‍हारी ओर दौड़े भी लेकिन तुम भीड़ के साथ घटिया कार्य में ऐसे मश्‍ागूल थे कि तुम्‍हारे कानों तक अपने बाबूजी की चीखें नही पहुंची। उनकी आंखों के सामने तुम सबने उनके सपने में आग लगा दी और आंखों का सपना जो सच हो गया था उसे तुमलोगों ने जलाकर खाक कर दिया।''
अब सिर पर हाथ रखने की बारी संजय की थी।चेहरे पर पश्‍चाताप और आंखों में आंसू तैर रहे थे जो कि उस लड़के के मरने पर भी उसकी आंखों में नही आए थे।

Thursday, 13 November 2014

लोक कथा

                               मां का दिल


एक मां थी। उसका एक बेटा था। मां ने उसे पाला-पोसा, बड़ा किया। उसे अपने पैरों पर खड़ा होने योग्‍य बनाया। सब कुछ व्‍यवस्थित होने पर मां ने उसका विवाह कर दिया। जैसा कि होता है, लड़का मां का भी ख्‍याल रखता और पत्‍नी का भी। लेकिन पत्‍नी को यह मंजूर नही था। वह बार-बार पति से एक ही सवाल करती ,' तुम किसे अधिक प्‍यार करते हो अपनी मां को या  मुझे?'
          लड़का पशोपेश में पड़ जाता। वह पत्‍नी को खुश करने के लिए कह देता, 'मैं सिर्फ तुम्‍हे ही प्‍यार करता हूं। मेरा विश्‍वास करो।'
         परन्‍तु पत्‍नी कहां मानने वाली थी। वह बार-बार लगातार यही सवाल करती रहती। आखिरकार लड़के के सब्र का बांध एक दिन टूट ही गया। उसने पत्‍नी से सवाल किया, ' आखिर रोज-रोज यह सवाल कर तुम साबित क्‍या करना चाहती हो, क्‍या मैं झूठ बोल रहा हूं। आज तुम मुझे साफ-साफ बताओ, आखिर तुम चाहती क्‍या हो? '
         पत्‍नी ने अपना मनचाहा सवाल पति के सामने रखा, ' अगर तुम वाकई सिर्फ मुझे ही चाहते हो तो तुम्‍हे इसका सुबूत देना होगा। बोलो तुम्‍हे मंजूर है? '
         लड़के ने रोज-रोज की खिच-खिच से बचने के लिए कह दिया, 'हां, तुम बोलो तुम्‍हे क्‍या सुबूत चाहिए । मैं तुम्‍हारे इस बेतुके सवाल से परेशान हो गया हूं। बताओ मैं कैसे तुम्‍हे विश्‍वास दिलाऊं। मुझे क्‍या करना होगा '
         पत्‍नी ने सपाट स्‍वर में  पूछा, ' क्‍या तुम अपनी मां का कलेजा निकाल कर ला सकते हो? '
         लड़के को काटो तो खुन नही। पर वह भी दिल का कमजोर निकला। वह वाकई पत्‍नी से प्‍यार करता था। पर पत्‍नी इस बात को समझ नही पाई और एक बेटे के हाथों जो नही होना चाहिए, वह हुआ।
         लड़का गया और मां का कलेजा निकाल कर पत्‍नी के पास ले जाने लगा, अपने प्‍यार का सुबूत पेश करने के लिए। तभी कमरे से निकलते समय लड़के का पैर चौखट से टकरा गया। वह गिरने-गिरने को हुआ तभी मां के कलेजे से आवाज आई, ' बेटा, चोट तो नही लगी ?'  

Sunday, 8 July 2012

रेडियो प्लेबैक इंडिया: वर्षा ऋतु के रंग : मल्हार अंग के रागों का संग

रेडियो प्लेबैक इंडिया: वर्षा ऋतु के रंग : मल्हार अंग के रागों का संग

बहुत ही सही समय है मन को मेघों के रंग में रंगकर भीग जाने का...कहां से आए बदरा...आसमान को निहारिए , बादल उमड़ते-घुमड़ते आपकी ओर आते दिख जायेंगे...फिर मन करेगा ' बरसो रे  मेघा-मेघा...'

Saturday, 7 July 2012

सविता सिंह

लोककथा 
                      ठनठन गोपाल

   एक औरत थी। उसके पति का नाम ठनठन गोपाल था। औरत को पति का यह नाम बिल्‍कुल पसंद नही था। वह जब भी किसी के मुंह से अपने पति का नाम सुनती, चिढ़ उठती। वह पति से हमेशा नाम बदलने को कहती। परन्‍तु ठनठन गोपाल हंस कर टाल देता। कहता कि नाम में क्‍या रखा है। उसकी पत्‍नी अपनी जिद पर अड़ी रही कि वह उसका नाम बदल कर ही दम लेगी। उसकी यह जिद देखकर ठनठन गोपाल ने उसे अपना नाम बदलने की अनुमति दे दी।
    औरत ने खुशी-खुशी पंडित जी को बुलाया और पति का नाम बदलने के लिए शुभ मुहूर्त निकलवाया। शुभ मुहूर्त के समय नाम बदलने की प्रक्रिया शुरू हुई। पंडित जी ने उस औरत से पूछा, ' तुम अपने पति का क्‍या नाम रखना चाहती हो ? '
    औरत पंडित जी को अपने पति का नया नाम बताने ही जा रही थी कि ठनठन गोपाल ने एक और प्रयास किया उसे समझाने का। उसने उससे कहा , 'भाग्‍यवान, एक बार फिर मै तुम्‍हें कहता हूं कि नाम मे कुछ नही रखा है। अगर तुम्‍हे मेरी बात का विश्‍वास नही होता तो एक बार बाहर जाकर कुछ लोगो से उनका नाम पूछकर आओ। अगर उनका नाम बल्‍कुल अर्थहीन न हुआ तो फिर तुम जो चाहो  मेरा नाम रख सकती हो।  औरत पति की बात मानकर बाजार  की ओर चल पड़ी। रास्‍ते में उसे एक मुर्दा जाता दिखा। उसने उसके साथ के आदमियों से उसका नाम पूछा। लोगों ने मृत व्‍यक्ति का नाम अमर सिंह बताया। नाम सुनकर औरत को बड़ा आश्‍चर्य हुआ। नाम अमर सिंह होते हुए भी वह क्‍यो मर गया!  वह आगे चल पड़ी। आगे एक भिखारी मिला। औरत ने उसका नाम पूछा तो उसने बताया धनपति। नाम धनपति और काम  भीख मांगना! वह मन ही मन हंसती हुई आगे बढ़ गई। आगे उसे एक औरत गोइठा पाथती हुई दिखी। औरत ने उसका नाम भी पूछने का विचार किया। उसने उसके पास जाकर उसका नाम पूछा, तो उसने बताया लक्ष्‍मी। नाम लक्ष्‍मी  और गोइठा पाथ रही है! उसने सोचा,  'वाह री,  नाम की लीला! अभी तो मैने नामों की पड़ताल  शुरू ही की है तो यह हाल है। अगर कुछ  देर और इसी तरह के नाम सुनने को मिल गये तो क्‍या होगा ? '  तभी उसे एक सेठ आता दिख गया। औरत ने सोचा कि सेठ का नाम तो उसके अनुरूप ही होगा। उसने सेठ से उसका नाम पूछा तो उसने बताया कौड़ीमल। कुछ और आगे बढ़ी तो एक अंधा व्‍यक्ति दिखा। लगे  हाथ उसने उसका नाम भी पूछ लिया।  उसने बताया नयनसुख। अब तो  और किसी  का नाम पूछने की उसने जरूरत ही नही समझी। वह तेजी से घर की ओर चल पड़ी। घर पहुंचकर वह ठनठन गोपाल से बोली, ' तुम ठीक ही  कहते थे।  नाम में कुछ नही रखा। जिसका नाम कौड़ीमल था उसके पास धन ही धन था और जिसका नाम धनपति था और लक्ष्‍मी था, दोनों  ही भिखारी और गरीब थे। इससे अच्‍छा तो मेरा ठनठन गोपाल ही है। मुझे अब तुम्‍हारा नाम बदलने की जरूरत नही। तुम ठनठन गोपाल ही ठीक हो।'    इसके बाद उसे पति के  नाम से कभी कोई चि‍ढ़ महसूस नही हुई, क्‍योंकि उसे यह बात अच्‍छी तरह मालूम हो गई थी कि‍ वास्‍तव में नाम में कुछ नही रखा।

Saturday, 21 January 2012

:: लोककथा ::

                                                                  चतुर लड़की

एक गरीब आदमी था। एक दिन वह राजा  के पास गया और बोला- 'महाराज, मैं आपसे कर्ज मांगने आया हूं। कृपा कर आप मुझे पांच हजार रुपये दें। मैं पांच वर्ष के अंदर आपके रुपये वापस कर दूंगा।'
       राजा ने उसकी बात पर विश्‍वास कर उसे पांच हजार  रुपये दे दिए। पांच वर्ष बीत जाने के बाद भी जब उस व्‍यक्ति ने राजा के पांच हजार  रुपये नही लौटाये तब राजा को मजबूरन उसके घर जाना पड़ा। लेकिन वहां वह व्‍यक्ति नही मिला। जब भी राजा वहां जाता बहाना बना कर उसे वापस भेज दिया जाता। एक दिन फिर राजा उस व्‍यक्ति के घर गया। वहां और कोई तो नही दिखा, एक छोटी लड़की बैठी थी। राजा ने उसी से पूछा- 'तुम्‍हारे पिता जी कहा हैं ?'
      लड़की बोली- ' पि‍ताजी स्‍वर्ग का पानी रोकने गये हैं। '
      राजा ने फिर पूछा- 'तुम्‍हारा भाई कहां है ?'
     लड़की बोली- 'बिना झगड़ा के झगड़ा करने गये हैं।'
     राजा के समझ में एक भी बात नही आ रही थी। इसलिए वह फिर पूछता है-' तुम्‍हारी मां कहां है ?'
    लड़की बोली- 'मां एक से दो करने गई है।'
 राजा उसके इन ऊल-जुलूल जवाब से खीझ गया। वह गुस्‍से में पूछता है- 'और तुम यहां बैठी क्‍या कर रही हो ?'
      लड़की हंसकर बोली- 'मैं घर बैठी संसार देख रही हूं।'
राजा समझ गया कि लड़की उसकी किसी भी बात का सीधा जवाब नही देगी। इसलिए उसे अब इससे इन बातों का मतलब जानने के लिए प्‍यार से बतियाना पडे़गा। राजा ने चेहरे पर प्‍यार से मुस्‍कान लाकर पूछा- 'बेटी, तुमने जो अभी-अभी मेरे सवालों के जवाब दिये, उनका मतलब क्‍या है ? मै तुम्‍हारी एक भी बात का मतलब नही समझ सका। तुम मुझे सीधे-सीधे उनका मतलब समझाओ।'
    लड़की ने भी मुस्‍करा कर पूछा - 'अगर मैं सभी बातों का मतलब समझा दूं तो आप मुझे क्‍या देंगे ?'
राजा के मन में सारी बातों को जानने की तीव्र उत्‍कंठा थी। वह बोला- 'जो मांगोगी , वही दूंगा ।'
    तब लड़की बोली- 'आप मेरे पिताजी का सारा कर्ज माफ कर देंगे तो मैं आपको सारी बातों का अर्थ बता दूंगी।'
     राजा ने कहा- 'ठीक है, मैं तुम्‍हारे पिताजी का सारा कर्ज माफ कर दूंगा। अब तो सारी बातों का अर्थ समझा दो।'
     लड़की बोली- 'महाराज, आज मैं आपको सारी बातों का अर्थ नही समझा सकती। कृपा कर आप कल आयें। कल मैं जरूर बता दूगी।'  
    राजा अगले दिन फिर उस व्‍यक्ति के घर गया। आज वहां सभी लोग मौजूद थे। वह आदमी, उसकी पत्‍नी, बेटा और उसकी बेटी भी। राजा को देखते ही लड़की पूछी- 'महाराज, आपको अपना वचन याद है ना ? '
     राजा बोला- 'हां मुझे याद है। तुम अगर सारी बातों का अर्थ बता दो तो मैं तुम्‍हारे पिताजी का सारा कर्ज माफ कर दूंगा।'
    लड़की बोली- 'सबसे पहले मैंने यह कहा था कि पिताजी स्‍वर्ग का पानी रोकने गये हैं, इसका मतलब था कि वर्षा हो रही थी और हमारे घर की छत से पानी चू रहा था। पिताजी पानी रोकने के लिए छत को छा  (बना) रहे थे। यानि वर्षा का पानी आसमान से ही गिरता है और हमलोग तो यही मानते हैं कि आसमान मे ही स्‍वर्ग है। बस, पहली बात का अर्थ यही है। दूसरी बात मैंने कही थी कि भइया बिना झगडा़ के झगड़ा करने गये है। इसका मतलब था कि वे रेंगनी के कांटे को काटने गये थे। अगर कोई भी रेंगनी के कांटे को काटेगा तो उसके शरीर मे जहां-तहां कांटा गड़ ही जायेगा, यानि झगड़ा नही करने पर भी झगड़ा होगा और शरीर पर खरोंचें आयेगी। '
     राजा उसकी बातों से सहमत हो गया। वह मन-ही-मन उसकी चतुराई की प्रशंसा करने लगा। उसने उत्‍सुकता के साथ पूछा- 'और तीसरी-चौथी बात का मतलब बेटी ? '
     लड़की बोली- 'महाराज, तीसरी बात मैंने कही थी कि मां एक से दो करने गई है। इसका मतलब था कि मां रहर दाल को पीसने यानि उसे एक का दो करने गई है। अगर साबुत दाल को पीसा जाय तो एक दाना का दो भाग हो जाता है। यानि यही था एक का दो करना। रही चौथी बात तो उस समय मैं भात बना रही थी और उसमे से एक चावल निकाल कर देख रही थी कि भात पूरी तरह पका है कि न‍ही। इसका मतलब है कि मैं एक चावल देखकर ही जान जाती कि पूरा चावल पका है कि नही । अर्थात चावल के संसार को मैं घर बैठी देख रही थी।' यह कहकर लड़की चुप हो  गई।
     राजा सारी बातों का अर्थ जान चुका था। उसे लड़की की बुद्धिमानी भरी बातों ने आश्‍चर्य में डाल दिया था। फिर राजा ने कहा- 'बेटी, तुम तो बहुत चतुर हो। पर एक बात समझ में नही आई कि यह सारी बातें तो तुम मुझे कल भी बता सकती थी, फिर तुमने मुझे आज क्‍यों बुलाया ?'
      लड़की हंसकर बोली- ' मैं तो बता ही चुकी हूं कि कल जब आप आये थे तो मैं भात बना रही थी। अगर मैं आपको अपनी बातों का मतलब समझाने लगती तो भात गीला हो जाता या जल जाता, तो मां मुझे जरूर पीटती। फिर घर मे कल कोई भी नही था। अगर मैं इनको बताती कि आपने कर्ज माफ कर दिया है तो ये मेरी बात का विश्‍वास नही करते। आज स्‍वयं आपके मुंह से सुनकर कि आपने कर्ज माफ कर दिया है, जहां इन्‍हें इसका विश्‍वास हो जायेगा, वही खुशी भी होगी। '
    राजा लड़की की बात सुनकर बहुत ही प्रसन्‍न हुआ। उसने अपने गले से मोतियों की माला निकाल उसे देते हुए कहा- 'बेटी, यह लो अपनी चतुराई का पुरस्‍कार! तुम्‍हारे पिताजी का कर्ज तो मैं माफ कर ही चुका हूं। अब तुम्‍हे या तुम्‍हारे घरवालों को मुझसे बहाना नही बनाना पड़ेगा। अब तुम लोग निश्चिंत होकर रहो। अगर फिर कभी किसी चीज की जरूरत हो तो बेझिझक होकर मुझसे कहना।'
     इतना कहकर राजा लड़की को आशीर्वाद देकर चला गया। लड़की के परिवारवालों ने उसे खुशी से गले लगा लिया।

Wednesday, 11 January 2012

कविता

                                                                           मां 


 मां
रोज सपने में आती हो
लोरी गाती हो
गीत गुनगुनाती हो
कहा‍नियां सुनाती हो
फिर न जाने कहां खो जाती हो
मां
आती तो हो
सपने में ही सही
गाती हो
गुनगुनाती हो
मुझे सोना आजकल बहुत ही अच्‍छा लगता है
क्‍योंकि मां से मिलना जो होता है
रात ही क्‍यों आजकल तो दिन में भी
सोने का मौका निकाल लेती हूं
क्‍योंकि दिन के सपने सच्‍चे जो होते हैं
मन का भुलावा है
यह एक छलावा है
फिर भी मैं नींद के आगोश में जाना चाहती हूं
क्‍योंकि मां तो आयेगी ही
सपने में ही सही
गायेगी, गुनगुनाएगी
सपने में ही सही
सपने सच्‍चे लगते हैं
सपने अच्‍छे लगते हैं
मां का साथ हो तो
सपनों की दुनिया भी
अपनी ही लगती है
मां सपने में
बहुत ही प्‍यारी लगती है